दो शब्द...
मैं कवि नहीं हूँ। कविता जीना मेरे बस में नहीं।
गाहे बेगाहे शब्दों को जोड़ लेता हूँ।
मुझे पता है आज कविता पढ़ने वाले उतने लोग नहीं हैं जितने लिखने वाले। ऐसे में कविता संग्रह का प्रकाशन मात्र एक शौक या कदाचित एक संभ्रांत मूर्खता से अधिक कुछ भी नहीं।
बहरहाल दुनिया को कविता की आवश्यकता है। कविता मानवता की मातृभाषा है। इसके बिना मानवता गूंगी हो जाएगी। इसलिए कविता लिखी जाती रहेगी। कविता मानव समाज का एक भावुक इतिहास होती है जिसका सत्य कोरे इतिहास से ज्यादा सुंदर और शिवत्व युक्त होता है। समाज के सच को जानने के लिए कविता की आवश्यकता रही है और आगे भी रहेगी। यह आदमी को आदमी बनाना सिखाती है।