कुछ "शर्तें" जिनका कोई वज़ूद या उनकी कोई आवश्यकता नहीं होती पर वे मान ली जाती हैं।
वही हमारे समाज का सबसे बड़ा अभिशाप होती हैं।
उन शर्तों के अंदर ना जाने कितनी सीमाएँ और कितनी घुटन होती है,
पर हम कभी इनके विरुद्ध बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते क्यूँकी हमे बस यही सीख मिली है इनके अंदर कहीं न कहीं हमारा हित छुपा हुआ है।
पर हित कभी भी छुपा हुआ या शर्तों मेें नहीं होता,
हित सदैव पारदर्शी होता है।
"शर्तें- unnecessary terms" एक ऐसी पुस्तक है जिसमें ना सिर्फ मैंने बल्कि 21 लेखकों ने अपनी सोच को अपनी कलम के माध्यम से जाहिर किया है।