शिलांकित' इस जीवन-यात्रा में मिले सुखद एवं दुःखद पलों का शब्द-चित्र मात्र है । अब मेरी क़लम यहाँ कुछ नहीं कहना चाहती। मैं जाड़े की शामों का आभारी हूँ जिसने मुझे टेबल-कुर्सी पर बैठकर कुछ मनन करने और खुद को खुद के साथ रहने का मौक़ा दिया।
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Shilankit / शिलांकित
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शनिल
मैं कोई कवि या शायर होने का दावा नहीं करता। ये अभिव्यक्तियाँ सायास नहीं अनायास है। कविता या शाइरी कोई हव्वा नहीं होती। यह तो दिलों की धड़कन है, टीस है, कचोट है और धड़कनें, टीसे, कचोटें हर दिल में होती है। यदि साधारण पाठक इन कविताओं और शेरों में कहीं अपनी आवाज सुन सके तों मैं अपने को कृत्य-कृत्य समझूँगा। अपने बारे में कुछ कहना बड़ा कठिन होता है। अपने को अपने से अलगकरके देखना बड़ा दुष्कर है। लेकिन फिर भी ऐसी जगहों पर मैं खुद के बारें खुद ही कुछ कहने का पक्षपाती हूँ। अगर मेरी कविताओं, मेरी शाइरी में कुछ होगा तो लोग गुनगुनाएंगे ही।
इन कविताओं, इन शेरों को मैंने उन्हीं क्षणों में लिखा है जब मैं लिखने के लिए विवश हो गया हूँ, जब मैं लिखे बिना नहीं रह सकता था।