लेखक की अखण्ड साधना का प्रसाद श्रीमद्भगवद्गीता (निष्पत्ति और निवृति) आपके समक्ष है, इनकी खंडित अभिव्यक्ति में आत्मस्तुति, प्रस्तुति, विस्तृति, निष्पत्ति तथा निवृति जो एक पुस्तकाकार में गीता बोध आपकी आकांक्षा की प्रतीक्षा करेगी, प्रकाशनार्थ परिशोधन में हैं । गीता द्वारा जनसामान्य के लिए बोध गम्यता तथ युवा पीढ़ी के लिए आत्म बोध एवं दिशा बोध प्रदान करना ही अभीष्ट है । मेरी कामना है कि यह असंख्य करों में धारण की जाय तथा हृदय में स्थान पाये । उपलब्ध तो हम सबों की होगी इन्हें मात्र निर्माण का ही आनन्द प्राप्त होगा ।