हकी़की इश्क, इश्क़ ए अहलेबैत और तसव्वुफ़ की नज़्मों से भरी किताब।
इश्क़ को बाँधकर नहीं रखा जा सकता, इश्क को हिस्सों में नहीं बाँटा जा सकता, इश्क़ की तफ़्सीर बयाँ नहीं की जा सकती, इश्क़ बस इश्क़ है। आशिको़ं ने जब इसे महसूस किया और जब इसकी आवाज़ सुनी तो बस इश्क़ की तरफ़ अपने कदम बढा़ दिए।
इश्क़ फ़ना से बका़ तक का सफ़र करवाता है। मुहब्बत अगर पाक़ हो तो हर मुहब्बत की आखि़री मंजि़ल अल्लाह ही है।
तो चलिए, इस किताब के ज़रिए, मजाजी़ इश्क़ से कहीं दूर जाकर, सिर्फ़ इश्क़ ए हकीकी़ में खोने की कोशिश करते हैं।