उसकी राह में फूल ही फूल बिछे थे... मदहोश कर देने वाली सुगन्ध बिखरी पड़ी थी..... अनिता की बाहों में बाँहें डाले वह जिन्दगी के मीठे नगमे गा रहा था परन्तु एक मोड़ के पश्चात वह राह बदल गई। अब जिस दर्दनाक राह पर वह खड़ा था.... वह ठुकराती राह थी... वह राहें बदलता रहा परन्तु राहें उसे ठुकराती रहीं । यह सिलसिला बढ़ता ही गया... और आज उसे महसूस हुआ कि वह राह का राही नहीं बल्कि राह का वह पत्थर है, जिसे गुजरते राही ठोकर मार कर आगे बढ़ जाते हैं।