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Urmila / उर्मिला

Author Name: Praveen Bahl | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

एक भावपूर्ण बहन भाई की रोचक कहानी समाज हर वक्त गलत नजरों से देखता रहा

समाज इतना गलत कैसे हो सकता है मुझे जवानी से ही की प्यास पर यह प्यास मेरी पूरी कभी नहीं हो सकती न आज —--कल बहन का प्यार नहीं मिल सका न अपने से न बेगाने से ।

1977 और 72 के बीच में जब मैं अपने से बड़ी एक लड़की से बहन जैसा प्यार करता था --- हर एक को समझने में बहुत देर लग गई थी

आज वह इस दुनिया में नहीं है ---- सिर्फ यादें हैं सिर्फ यादें जिन्हें भिगोकर रख गया ।

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प्रवीण बहल

पिता: डॉ. मदनलाल बहल

व्यवसाय: रिटायर्ड मैनेजर (इंडियन ओवरसीज बैंक )

कॉलेज लाइफ से ही इन्हें अच्छी रचनाएँ लिखने का शौक था । कॉलेज मैग्जीन में ही इनकी कविताएँ, लघुकथाएँ पंजाबी और संस्कृत भाषा में प्रकाशित होती रहीं । 1980 में इन्होंने भारतीय विकलांग संघ कल्याण बनाकर विकलांगों की सेवा की और फिर हरियाणा विकलांग क्रिकेट एसोसिएशन के माध्यम से विकलांग खेलों को मान्यता दिलवाने की कोशिश की। भारतीय विकलांग कल्याण संस्थान ने इनकी कई पुस्तकों का प्रकाशन किया । जिनमें 'रिश्ता', ठुकराती राहें (उपन्यास) प्रकाशित हुईं, साथ ही इनकी रचनाएँ रेडियो पर भी प्रकाशित होती रहती हैं ।

प्रकाशित कृतियाँ : रिश्ता, ठुकराती राहें (उपन्यास), दिशा, खामोशी, कुछ पल कुवैत में (काव्य संकलन), आँसू बहते रहे, टूटे हुए सपने, जलते चिराग आदि ।

अन्य उपयोगी पुस्तकें : 1. नवीन फर्स्ट एड, 2. फर्स्ट एड, 3. सिविल डिफेंस, 4. दीया जलाए कौन है, 5. यह कैसे हुआ आदि ।

बाद में समय समय पर इनकी रचनाएँ एवं काव्य संकलन भी प्रकाशित होते रहे हैं ।

प्राप्त सम्मान : 1980 मैं इन्हें भारत के राष्ट्रपति महोदय ने नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया, हरियाणा सरकार से दो बार जिला स्तर पर एवं 6 बार बड़े-बड़े पुरस्कार मिले हैं।

इनके संघर्ष भरे जीवन पर 600 पेज की एक जीवनी भी लिखी गई है।

पता : 94 सेक्टर 4, गुरुग्राम (हरियाणा)

मो न : 9810499916

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