"अरे रिक्शा...! रिक्शा... अरे रिक्शा! जरा रुको तो। तुम्हें जरा भी कदर नहीं। मैं परेशान दौड़ते हुए तुम्हारे रिक्शे की तरफ आ रही हूं और तू है कि भागता ही जा रहा है।" कहते-कहते 42 साल की पहाड़ की जैसी भारी औरत उसके सामने आकर खड़ी हो गई। सादिक चुपचाप रिक्शा से उतर गया और उस औरत को बैठने का इशारा किया।
"हां हां चल ठीक है। मैं बैठती हूं। मगर यह मेरा सामान...।"