वर्ण उसके मूलभूत स्वरूप में क्या थे? जातीयाँ कैसे अस्तित्व में आई? वर्ण व्यवस्था किस लिए बनाई गई थी और किस कारण से भटकी या परिवर्तित हो गई? और अब भारतीय समाज के भविष्य के लिए आगे की राह क्या है? आप एक ऐसी पुस्तक पढ़ने जा रहे है, जो इन सभी प्रश्नों के उत्तर चेतना से सबसे गहरे स्तर से सबसे सरल स्वरूप में और सबसे स्पष्ट वैज्ञानिक रूप में देने वाली है। सिर्फ़ पाँच अध्याय और कुछ हज़ार शब्द में यह एक ग्रंथ इस पूरे जटिल विषय को अतीत से भविष्य तक सुलझाकर रख देता है। एक ऐसा विषय जिसने भारतीय समाज को सदियों तक सवालों में घेरा वह यहाँ पर अपनी जाल छोड़ रहा है, और मानव के समक्ष बहुत ही स्पष्ट, सरल सत्य के रूप में पेश हो रहा है। आइए जानते है, एक आत्मज्ञानी की दृष्टि से क्या है वर्ण और जाती का विज्ञान?