यह कहानी एक साधारण कल्पना नहीं, बल्कि किशोर मन की गहराई से निकली वह आवाज़ है जो समाज की विसंगतियों को देखती है, समझती है और अपनी कलम से उन्हें चुनौती देती है।
जी हाँ, आपने सही पढ़ा—यह किताब मैंने आठवीं कक्षा में लिखी थी। उस उम्र में जब बच्चे गणित और विज्ञान में उलझे रहते हैं, मैंने एक ऐसी दुनिया गढ़ी जहाँ एक चोर मसीहा बनता है, जहाँ चोरी सिर्फ अपराध नहीं बल्कि सामाजिक प्रतिरोध हैi
कहानी का केंद्र है ‘एम’—एक ऐसा पात्र जो पेशे से चोर है, लेकिन उसकी आत्मा एक क्रांतिकारी है। वह अमीरों को लूटता है, लेकिन उन पैसों को गरीबों में बाँट देता है। वह कानून तोड़ता है, लेकिन इंसानियत की रक्षा करता है। वह अपराधी कहलाता है, लेकिन मसीहा बन जाता है।
क्या है उसके चोरी करने के पीछे का असली मकसद? क्या उसका मिशन सफल होगा? क्या व्यवस्था उसे स्वीकार करेगी या दंड देगी?
इन सवालों के जवाब आपको इस कहानी के पन्नों में मिलेंगे। लेकिन उससे भी ज़्यादा, आपको मिलेगा एक किशोर लेखक का दृष्टिकोण—जो न उम्र से सीमित है, न कल्पना से।
मैं रंजन कुमार, बिहार के हाजीपुर से हूँ। अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक हूँ, लेकिन मेरी आत्मा हिंदी में बसती है। 'रौद्र' मेरा कलमी नाम है—जिसके पीछे एक ज्वाला है, एक विद्रोह है, और एक सपना है कि मेरी कहानियाँ उन लोगों तक पहुँचें जिनकी आवाज़ अक्सर दबा दी जाती है।
यह किताब उन सभी किशोरों को समर्पित है जो सोचते हैं, महसूस करते हैं, और लिखते हैं—चाहे दुनिया उन्हें गंभीरता से ले या नहीं।
क्योंकि कल्पना की कोई उम्र नहीं होती। और क्रांति… कभी भी जन्म ले सकती है।
– रौद्र (रंजन कुमार) हाजीपुर, बिहार
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