जल ही जीवन है, ऐसा भी कहा जता है, और प्रसिद्ध कवि रहीमदास जी तो यहाँ तक कह गये हैं कि ”रहिमन पानी रखिये, विन पानी सब सून”। लेकिन अगर वह पानी भी बहती हुई जल तरंगों का हो तो कहने ही क्या? ठहरे हुए जल को तो अशुद्ध ही समझा जाता है। पवित्र गंगा नदी में कितनी भी गन्दगी बहा दी जाती हैं किन्तु जल तरंगों के माध्यम से वह कुछ दूर जाकर पुनः शुद्ध गंगाजल के रूप में परिवर्तित हो जाता है।