सच में एकांत में रहने का एक अलग ही अनुभव होता है क्योंकि एकांत ही एकमात्र साधन है जिससे इंसान अपने बारे में या प्रकृति के बारे में स्वतंत्रता पूर्वक सोच विचार कर सकता है।
यहां तक की बड़े-बड़े दार्शनिक तथा पैगंबर, अवतार भी इसी प्रकार से एकांत में रहकर सोच विचार करते थे।
पैगंबर तथा अवतार के बारे में तो कहा जा सकता है कि वह ईश्वर के बारे में ही चिंतन मनन करते होंगे लेकिन दार्शनिक तथा अन्य व्यक्ति के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि क्या सोचते होंगे ? मुझे लगता है कि वह स्वयं अपने बारे में ही या प्रकृति के बारे में ही सोच विचार करते होंगे। मनुष्य कितना भी व्यस्त रहे लेकिन जीवन में एक या दो बार ऐसे पल आते हैं जिसमें एकांत में रहकर अपने बारे में या प्रकृति के बारे में सोच विचार करता है।
और जब कभी दुख होता है तब भी वह एकांत में रहना पसंद करता है।
इन्हीं सब विषयों पर एकांत में क्यों इंसान रहना पसंद कर लेता है? उसी के बारे में संक्षिप्त विवरण दिया गया है साथ में जो बड़े पैगंबर या अवतार हैं उनके बारे में भी दिया गया है। कृपया इस पुस्तक को पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया दें, जिससे मैं आपकी जानकारी को साझा कर सकूं ।
धन्यवाद
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