यह पुस्तक प्राचीन भारतीय कहानियों का उपयोग आज की पारिवारिक समस्याओं को समझने और उनका हल निकालने के लिए करती है। लेखक का मानना है कि माता-पिता और बच्चों के बीच का संघर्ष नया नहीं है, बल्कि यह आदिकाल से चला आ रहा है, जैसा कि सनत कुमारों की कथा में देखा जा सकता है।
पुस्तक इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे माता-पिता अपनी अधूरी इच्छाओं को अपनी संतान के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं। इससे बच्चों में अपराधबोध पैदा होता है, क्योंकि वे अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से कई संवेदनशील बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
इसमें यह भी बताया गया है कि अक्सर आर्थिक समृद्धि ही परिवारों में कलह का कारण बनती है, क्योंकि गरीबी वाले परिवारों में लोग आजीविका कमाने में व्यस्त रहते हैं।
अंत में, यह पुस्तक नहुष के अहंकार और ययाति की स्वार्थपरता जैसी प्राचीन कथाओं के माध्यम से यह दिखाती है कि कैसे समृद्धि और अतृप्त इच्छाएं बर्बादी का कारण बनती हैं। इसका लक्ष्य पाठकों को पारिवारिक समस्याओं को एक नए दृष्टिकोण से देखने में मदद करना है।
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