तुम मेरे हो, प्रीत की भावनाओं का ऐसा संग्रह है, जिसमें कवियत्री ने प्रेम की शाश्वतता व स्थायित्त्व के आधार पर प्रिया व प्रिय को एक-दुसरे का पूरक बताया है, व समय-समय पर जीवन की तमस भरी संगीन गलियों में अपने उजास रूप में साथ होने का आभास कराता है ।
प्रिया व प्रिय के माध्यम से कवियत्री ने एक रहस्यवाद को चित्रात्मक किया है । जो कि, प्रकृति व पुरुष सा स्त्री व पुरुष के रूप में प्रेम की प्रगाढ़ता का प्रदर्शन करते हुए आत्मा व परमात्मा सा परस्पर अर्द्धांग स्वरूप बनाता है ।