इश्क़ का इज़हार, एक तरफा मुहब्बत, भीगे तकिए में घिरी वो रातें, कुछ ख़त जो दिए नहीं, कुछ ख़त जिनके जवाब आए नहीं, वो हसरतें, वो चाहतें, कुछ टूटे ख़्वाब थे, कुछ रह गए थे अधूरे, कुछ झूठी कसमें और साथ कुछ टूटे वादे, क्या क्या नहीं पिरोया इस क़िताब के हर लफ्ज़ में !!
ये क़िताब सिर्फ़ कुछ शेर, शायरी, ग़ज़ल, नज़्म और रूबाई का संग्रह नहीं है ये तो अभी तक की ज़िन्दगी में जिए हुए पलों का हूबहू वर्णन है। उम्मीद है आप अपना कीमती वक़्त इसे पढ़ने में ज़ाया करने की ज़हमत उठाएंगे। तो अब मैं ये क़िताब आपके हवाले छोड़ कर आपसे विदा लेता हूं, एक गुज़ारिश है कि इसे तसल्ली से बैठकर एहतियात से पढ़िएगा और इसके हर बेरहम लफ्ज़ को अपने दिल में तीर सा घुसने दीजिएगा।
इसे पढ़ने के बाद कोई ख़्वाब, कोई चेहरा, कोई गुज़री बात अगर याद आए और दिल में दर्द और चेहरे पर मुस्कुराहट आने लगे तो समझ लीजिएगा इस क़िताब को लिखने का मेरा मक़सद पूरा हुआ।
खैर, मैं चलता हूँ अपने ख़यालों में डूबकर कुछ और लफ़्ज़ों को अपनी डायरी पर लिखने!
"वक़्त की बेपरवाही ने हमें आशिक़ बना दिया,
आशिक़ ने शायर, और शायर ने मुक़ाम दिला दिया।"
अभिषेक वार्ष्णेय (उपनाम - "अभी") एक MBA छात्र जो लेखक बना, एक साहित्य और प्रकृति प्रेमी है। उन्होंने 15 साल की उम्र में कविता लिखने की ओर पहला कदम बढ़ाया। उनका लेखन ज़्यादातर हिंदी और उर्दू भाषा का मिश्रण होता है। उनकी कविताओं को विभिन्न जगहों पर सराहा गया है। उनका प्रारंभिक काम मुख्य रूप से प्यार, और सकारात्मकता के इर्द-गिर्द घूमता था। जीवन के अनुभवों से सीखते हुए, उन्होंने रिश्तों, दिल टूटने, ज़िन्दगी, सामाजिक कारणों और प्रकृति की सुंदरता के बारे में लिखना शुरू किया। प्यार और रोमांस, रिश्तों की गर्मजोशी और ठंडक ने हमेशा उनकी कविताओं को प्रतिबिंबित किया है। संगीत के प्रति उत्साह होने के कारण, वो गाने में भी रुचि रखते हैं।
"शायरों से सीखो हुनर दुख सहने का,
अपनी "आह" पर, वो "वाह" सुनते हैं।"