JUNE 10th - JULY 10th
ठंडी ठंडी हवाएं चल रही थी, सूरज भी आज जैसे लुका छुपी खेल रहा था। लाल रंग का स्वेटर पहने, हाथो को जेब मे डाले, सर पर बंदर टोपी लगाए, जो उसकी मम्मी ने उसे जबरदस्ती पहनाई थी, एक 16 साल का लड़का अपने घर की ओर बढ़ रहा था। उस लड़के का नाम मोहित था और वो 10वी क्लास का स्टूडन था। वो अपने घर पहुंचते ही बिना कपड़े बदले सीधा रजाई मे घुस गया। सर्दियों के मौसम मे गर्म गर्म रजाई, बस एक चाय की कमी थी उसने अपनी मम्मी को आवाज लगाई
" मम्मी ! चाय बना दो। " उसकी मम्मी रसोई से बाहर आई। और जैसे ही उसे रजाई मे घुसे हुए देखा वो भी बिना कपड़े बदले, वो गुस्सा हो गई " ये क्या मोहित! कितनी बार कहा है स्कूल से आते ही कपड़े बदल के हाथ मुंह धोकर तो रजाई मे घुसा करो, पर तू मेरी बात मानता ही नही। ठहर अभी बताती हू तुझे! " इतना कहते ही मोहित की मम्मी मोहित की ओर बढ़ी। मोहित फटा फट रजाई से निकला और बाथरूम मे घुस गया।
मोहित एक जिद्दी लड़का था, किसी की बात नही मानता और अपनी बात मनवाने के लिए कुछ भी कर सकता था। जैसे जब उसके स्कूल के दोस्तो ने रिमोट कंट्रोल वाली कार ली तो उसने भी जिद्द पकड़ ली, मोहित के पापा वॉचमैन का काम करते थे और उनकी आय इतनी नही थी की वो मोहित के सब शौंक पूरे कर पाए। पर वो उसकी और अपने परिवार की जरूरतें हमेशा पुरी करते थे, पर मोहित को इसे कोई फर्क नही पड़ता था। उसे जो चाहिए वो उसे लेकर रहता था, वैसे ही रिमोट कंट्रोल कार के लिए उसने जिद्द पकड़ी और खाना पीना छोड़ दिया तो उसके घरवालों को ना चाहते हुए भी उसे रिमोट कंट्रोल वाली कार दिवालनी पड़ी। मोहित के मम्मी पापा उसकी इस आदत से बहुत तंग थे। वो उसे हमेशा समझाते की " बेटा! जितनी बड़ी चादर हो उतने ही पैर पसारने चाहिए" पर वो ये बात समझता ही नही था।
ऐसे ही एक दिन उसने नई जिद्द पकड़ ली, उसके स्कूल के कुछ दोस्तो ने नवा फ़ोन लिया था तो अब मोहित को भी फ़ोन चाहिए था। वो फ़ोन लगभग 15 हज़ार का था पर उसके पापा की आय 12 हज़ार थी। और अगर उसके मम्मी पापा इतना महंगा फ़ोन लेकर उसे देंगे, तो खायेंगे क्या ? महीने का गुज़ारा कैसे होगा ?
उन्होंने मोहित को बहुत समझाया पर मोहित था की मानने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसे लगा इस बार भी अगर वो वैसे ही खाना छोड़ देगा तो उसे फोन मिल जाएगा। 2-3 दिन तो ऐसे चलता रहा, वो खाने को लेकर नखरे करता रहा। उसके मम्मी पापा को लगा की शायद खुद समझ जाएगा पर दिन ब दिन उसकी ये जिद्द बढ़ती जा रही थी। मोहित के पापा को अबकी बार गुस्सा आया उन्होंने गुस्से मे मोहित से कहा
" मोहित! बस बहुत हुआ। तुम्हारे दोस्त के पापा अमीर है, वो उनके शौंक पूरे कर सकते है। मै एक वॉचमैन हूं, उतने पैसे नही कमाता पर तब भी तुम्हारे शौंक और जरूरतें पुरी करता हूं। पर ये जिद्द पुरी नही कर पाऊंगा। "
मोहित को बहुत बुरा लगा और उसने कहा
" सबके मम्मी पापा करते है अपने बच्चो के शौंक और जरूरतें पूरी और अगर आप इतने पैसे नही कमाते तो मै क्या करू। पैदा किया है तो ये सब करना ही पड़ेगा" इतना सुनते ही मोहित की मम्मी को गुस्सा आया उन्होंने मोहित को जोर का धपड़ मारते हुए कहा " बतमीज! ऐसे बात करते है अपने पापा से। " । मोहित की मां ने इससे पहले उसे कभी थपड़ नही मारा था, बस डांट देती थी। मोहित को बहुत बुरा लगा वो रोते हुए घर से बाहर निकला। पीछे पीछे मोहित की मम्मी भी जानें लगी पर मोहित के पापा ने रोकते हुए कहा " जानें दो उसे, थोडी देर बाहर रहेगा अकल आ जाएगी। बहुत बतमीज और जिद्दी हो गया है ये। "
मोहित रोते हुए बस यही सोचता जा रहा था की अब कुछ भी हो जाए वो घर वापिस नही जायेगा। उसके दोस्त का बड़ा भाई विनीत भी ऐसे ही घर छोड़ कर भागा था, और वापिस अमीर बन कर आया था। वो भी उनकी तरह बनने का सोचता है और विनीत भईया के पास जाता है। विनीत भईया को सारी बात बताता है, कुछ देर शांत बैठ कर वो मोहित की बात सुनते है और पुरी बात समझने के बाद कहते है " मोहित तुम चिंता मत करो घर से भागने मे मै तुम्हारी मदद करूंगा। चलो मेरे साथ रेलवे स्टेशन, वहां से तुम्हे किसी शहर मे भेज दूंगा। तुम वहां जाना, खूब कमाना और अपने शौंक पूरे करना। " इतना सुनते ही मोहित की सारी उदासी दूर चली गई, वो बेहद खुश हो गया। शाम को ठंड बहुत थी और घना कोहरा भी छाया हुआ था। रह रहकर सर्द हवाएं उन दोनों के शरीर को शूकर गुजर रही थी। अपनी मोटरसाइकिल की मदद से विनीत भईया, मोहित को स्टेंशन पर लेकर आते है। वो दोनो अन्दर जाते है। विनीत भईया कुछ देर मोहित को लेकर पूरे स्टेशन पर इधर से उधर घूमते है, ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई खास जगह ढूंढ रहे है। कुछ देर की तलाश के बाद वो स्टेशन के बिलकुल आखिर की बेंच पर आकर बैठ जाते है। विनीत भईया फिर मोहित से कहते है
" तुम कुछ देर यही बैठो, मै तुम्हारी टिकट लेकर आता हूं। "
मोहित वहा अकेला बैठा था। उसने आस पास नज़रे घुमाई, स्टेशन पर कोई ट्रेन नहीं खड़ी थी और स्टेशन पर ज्यादा लोग भी नही थे। उसे ठंड बहुत लग रही थी हालाकि उसने गर्म कपडे पहन रखे थे पर इतने कपडे इस कड़ाके की सर्दी से लड़ने के किए प्रयाप्त नही थे। इसी बीच मोहित की नज़र उसकी बेंच से थोडी ही दूर, स्टेशन पर लेटे एक मां बेटे पर पढ़ी। शायद ये स्टेशन पर कूड़ा उठाने और साफ़ सफाई का काम करते है, मोहित के मन मे खयाल आया। अब वो उन्हें ही देख रहा था। बेटे की उम्र देखने मे करीबन 5 से 6 साल की लग रही थी, उसके तन पर पूरे कपड़े नही थे। ठंड से उसका शरीर कांप रहा था। बगल मे लेटी उसकी मां ने भी बस एक साड़ी पहन रखी थी पर वो अपनी उस साड़ी के पल्लू से अपने बेटे को ढकने की पुरी कोशिश कर रही थी ताकि उसे ठंड ना लग सके। उसे अपने सीने से लगाए वो खुद ठंडी हवाओं की मार खा रही थी और अपने बेटे को गर्म रखने की पुरी कोशिश कर रही थी।
मोहित को ये सब देखर बहुत दुःख हुआ। एक वो है जो एक फ़ोन ना मिलने की वजह से अपना घर छोड़ आया और एक ये, जिनके पास पहने को पूरे कपड़े नही, लेटने को बेड नही, रहने को घर नही। मोहित उन्हें ऐसे ठंड मे ठिठुरते हुए नही देख पा रहा था। वो उठा और उसने अपनी जैकेट उतारी, जो उसने अपनी मम्मी पापा से बहुत जिद्द करके ली थी और वो जैकेट उन दोनों को दे दी। जैकेट देते समय जो उसने महसूस किया, वो उन मां बेटे के चेहरे पर आई खुशी, ये तमाम बाते उसके दिमाग़ मे घूमने लगी। वो अपनी बेंच पर आकर बैठा और ये सोचने लगा की आखिर उसने ये सब क्यू किया। ये सब विनीत भईया छुपकर देख रहे थे। वो मोहित के पास आए और उन्होने मोहित से पूछा " मोहित! तुम्हारी जैकेट कहा गई। " पहले तो मोहित हिचकिचाया पर फिर उन मां बेटे की ओर इशारा करते हुऐ कहने लगा " भईया वो जैकेट मैने उनको दे दी। " विनीत भईया शाबाशी देते हुए कहते है " अरे वाह मोहित! ये तो तुमने बहुत नेकी का काम किया। पर अपनी नवी जैकेट क्यों दे दी ? "
जिसपर मोहित कहता हैं " शायद उन्हें उसकी ज्यादा जरूरत थी। "
" जरूरत, बिलकुल सही कहा तुमने। तुम्हे लगा उन्हें इसकी ज्यादा जरूरत है तो तुमने अपनी वो जैकेट जो तुम्हें इतनी जिद्द करने के बाद मिली, वो तुमने उन्हें दे दी। अब यही सब हमारे मां बाप करते है, वो हमारी जरुरते पुरी करते है। जो उन्हे लगता है की हमारे लिए जरूरी है फिर वो चाहे खुद के सपने या जरुरते पुरी कर पाए या नही। वो इतने भी बुरे नही होते जितना हम उनको बुरा बना देते है। "
मोहित ने सब बातें समझते हुए कहा " फिर आप क्यों घर छोड़कर भागे थे ? "
जिसपर विनीत भईया ने कहा " हां! मै भागा था घर से पर जब बाहर जाकर दुनिया देखी तो समझ आया की घरवालों की अहमियत क्या होती है। इस दुनियां मे सिर्फ तुम्हारे मां बाप ही है जो तुम्हारा साथ कभी नही छोड़ेंगे "
मोहित को सब बातें समझ आ जाती है पर एक सवाल और विनीत भईया से करता है " ये बात तो आप मुझे वहीं समझा सकते थे फिर यहां क्यू लाए? "
जिसपर विनीत भईया ने कहा " तब तुम बहुत गुस्से मे थे, अगर मै तब तुम्हें समझाता तो तुम समझते ना। यहां जब तुम थोड़ा शांत हुए और जो तुमने इन्हे देखकर एहसास किया, बस वहीं महसूस कराने मै तुमको यहां लाया था। तुमने अबतक अपने से ज्यादा अमीर लोग ही देखे है जो अपनी जरूरतें और शौंक बड़ी आसानी से पुरी कर लेते है पर तुमने कभी ये नही सोचा की जरूरत चाहे छोटी हो या बड़ी, हर जरूरत को पुरा करने के लिए मेहनत लगती है जैसे तुम्हारे पिता जी करते है। इसलिए आजतक जो भी उन्होने तुम्हारे लिया किया, वो उनकी मेहनत का निचोड़ है। तुम्हे उनकी मेहनत और प्यार की कदर करनी चाहिए और उसी मे संतोष करना चाहिए। अगर तुम्हारी जरूरतें जायदा है तो उसे पुरा करने के लिए संघर्ष करो, मेहनत करो, अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, एक अच्छे और मेहनती इंसान बनो जिसे तुम्हारे घरवाले तुम पर गर्व कर सके।"
ये सब सुन कर मोहित की आंखे नम हो चुकी थी की तभी ट्रेन के हॉर्न की आवाज़ आई। " अब बताओ, तुम शहर जाना चाहते हो या नहीं ? "
ट्रेन स्टेशन पर आकर खड़ी हो चुकी थी। मोहित ज़ोर ज़ोर से रोने लगता है और कसके विनीत भईया को गले लगाता है। " नही विनीत भईया! मुझे मम्मी पापा के पास जाना है। "
विनीत भईया मोहित को उसके घर लेकर जाते है। जहां उसके मम्मी पापा मोहित की चिंता मे रो रहे थे, की तभी मोहित को देख कर वो उसकी और दौड़े
" कहा चला गया था तू ? हमने तुझे कहा कहा नहीं ढूंढा। " मोहित की मम्मी मोहित को गले लगाते हुए कहती है। विनीत भईया सारी बात उन्हें बताते है। मोहित अपने मम्मी पापा से माफ़ी मांगता है और ये वादा करता है की आगे से वो जिद्द नही करेगा और अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान देगा।
लेखक - वी. के. रावत
#167
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smartmail003
लेखकने अपनी कल्पणा बहोत ही सुंदर तरीके से काहानी मे सजाई है. बहोत ही बढिया, प्रेरणादायी कहानी.
surajanshraj
Extremely Interested
anujmishra0041
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Thank you for taking the time to report this. Our team will review this and contact you if we need more information.
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