नूर - अनकही दास्तान

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अपने आँचल में सिसकती नूर की आवाज़ को धीमे करने की नाकाम कोशिश करती उसकी माँ ने, दरवाजे की आहट से घबरा कर, नूर के मुँह को अचानक अपने हाथ से दबा दिया। डर से सहमी उसकी माँ को यह आभास भी ना हुआ कि नन्ही नूर के मासूम से निचले होंठ पर उसके पल्लू में सजे गोटे और हाथ के दबाव से खून निकल रहा था। कुछ पल इन्तज़ार करने के बाद, जब उसने अपने हाथ को हटाया, तो पहला से ही उसकी माँ की नम आँखों से जैसे सैलाब सा बह गया।

वह नूर से माफी मांगती रही और दबी अवाज में रोती रही…और बोलती रही, "मुझे माफ कर दो…मुझे माफ कर दो, मेरी नन्ही गुड़िया, मैं चाह कर भी, तुम्हारी मदद नहीं कर सकती। तुम्हारे अब्बू को गर, इस बात की भनक भी पड़ी तो वो तुम्हारा घर से बाहर निकलना बंद करवा देंगे। तुम्हारे सब सपने चकनाचूर हो जाएंगे और बंदिशों की बेड़ियों में मेरी तरह तुम भी सिमटी सी रह जाओगी।"

अपनी माँ की घबराहट को भाँप तो लिया था नूर ने मगर, मासूम सवाल कहाँ किसी के लिए रुकते हैं। कुछ पल के इन्तज़ार के बाद, उसने अपनी माँ से आखिरकार पूछ ही लिया, वो सवाल,

"माँ, मेरी इसमें क्या गलती है, बड़े अब्बू ने मुझे स्कूल के रास्ते में रोक कर, अपने गंदे हाथों से स्पर्श किया। मैंने तो बस उन्हें रोकने के लिए आवाज उठाई थी। उन्हें थप्पड़ मारना क्या गलत था। बोलो ना माँ….देखो, उन्होंने मेरे शारीर पर यह कैसे वहशी निशान बना दिए हैं। उनके नाखून की चुभन से खून भी निकला था मेरा और अब तुम कहना चाहती हो कि अब्बू…मेरे अपने अब्बू, मुझे ही कसूर वार मानेंगे। मेरा ही स्कूल जाना बंद करवा देंगे। क्या बड़े अब्बू को कुछ नहीं कहेंगे?"

नूर की माँ ने बस एक टूक जवाब दिया,

"हाँ! मेरी बच्ची, दुनिया की गलत, मगर यही रीत है।"

ख़ामोशियों में डूबी ज़िन्दगी, बस यूँ ही चलती रही। नूर के बड़े अब्बू ने भी फिर दोबारा कुछ ना किया। कुछ साल और बीते, नूर अब पंद्रह साल की हो गई थी। नूर और उसकी माँ ने बड़े सपनों को बुनना शुरू कर दिया था। नूर क्लास में हमेशा अव्वल आती और इसलिए नूर की शिक्षा को प्राथमिकता देते हुए, उसकी माँ के बहुत मिन्नतें करने पर, उसके अब्बू ने घर पर ही, नूर की ट्यूशन का प्रबंध करवा दिया।

एक शाम को नूर के पिता, अपनी प्रमोशन की खुशी में घर पर मिठाई ले कर आए। उनकी चहरे की खुशी देखे ही बनती थी। घर पहुँच कर, दरवाज़े पर अचानक रुक गए और खुद ही से मन ही मन मुस्कुरा कर बोले, "अरे, पहले मैं, मिठाई का डिब्बा तो खोल लूँ। दरवाज़ा खुलते ही, नूर की अम्मी के मुँह में यह बर्फी का टुकड़ा डाल कर ही यह खुशखबरी बताऊँगा। खुश हो जाएगी वो।"

दरवाज़े को जैसे ही खटखटाने के लिए हाथ मारा तो दरवाज़ा खुद ही खुल गया। तेजी से आगे बढ़, नूर के पिता घर के अंदर घुसे और खुशी से आवाज लगाई, "नूर की अम्…" मगर अल्फाज जैसे मुँह में ही रुक गए। साँस थम सी गई, आँखें खुली की खुली रह गई। कुछ देर अचंभित, हैरान और फिर गुस्से से भरे नूर की पिता अब्बू आँखों के साथ चलाये….नू..र।

नूर सामने सोफ़े के किनारे गिरी पड़ी थी। शरीर पर कपड़े नाम मात्र थे। नूर के अब्बू के हाथ से मिठाई का डिब्बा गिरा, और सामने मेज से तुरंत चादर उठा नूर के शरीर को ढक दिया। नूर को उठाने की नाकाम कोशिश करते रहे। बाहर की ओर दौड़े और सामने के घर से डॉक्टर रोशन और उनकी पत्नी को पुकार, घर के भीतर ले आए। डॉक्टर ने चेक करने पर बताया कि साँसे चल रही हैं। मगर…

"मगर क्या रोशन? मगर क्या? बताओ भी…मेरी बच्ची को क्या हुआ है?"

सवाल जैसे थमने का नाम ही ना ले रहे हों।

"चिंता मत करो, बस नूर को अस्पताल ले जाना होगा। तभी सब पता चलेगा।" रोशन ने अपनी पत्नी दीपा को इशारा किया, और खुद नूर के पिता के साथ दूसरे कमरे में चले आए। एम्बुलेंस के लिए फोन किया और नूर के पिता को सांत्वना देने की नाकाम कोशिश की। तब तक दीपा ने नूर को कपड़े पहना दिए। नूर को एम्बुलेंस में डाल ही रहे थे कि नूर की अम्मी बाजार से सब्जी लेकर घर वापिस पहुँची। नूर को देख वो सेहरा उठी और नूर के अब्बू से पूछने लगी, पर..

"सब तुम्हारी गलती है।"

बस इतना जवाब काफी था, उस माँ के दिल को चीरने के लिए।

अस्पताल में डॉक्टर ने तेजी तो बहुत दिखाई मगर नूर तब तक कोमा में जा चुकी थी। चेक अप में केवल इतना पता लगा कि नूर का बलात्कार हुआ था। मगर, क्या ये सिर्फ इतनी सी बात थी। पुलिस ने भी कार्यवाही जल्दी करते हुए तुरंत अब्दुल, जो नूर का ट्यूशन टीचर था, उसको गिरफ्तार कर लिया।

कुछ दिन बीते, मगर नूर कोमा से बाहर नहीं आयी। तहकीकात में ये पता लगा कि उस दिन अब्दुल जल्दी घर चला गया था क्योंकि उसको लखनऊ में अगले दिन सुबह इंटरव्यू देने जाना था। सभी सबूतों को देख अब्दुल को पुलिस ने रिहा कर दिया। अब पुलिस को और कोई सुराग नहीं मिल रहा था। नूर ही एक इकलौती गवाह थी, मगर वो होश में कहाँ थी कि गुनाहगार के बारे में कुछ बता सके।

क्या नूर कुछ बता पाएगी?

क्या उसको इंसाफ मिलेगा?

नूर के अब्बू को ये सवाल अंदर ही अंदर से खाए जा रहे थे।

"तुम चिंता मत करो, नूर जल्दी उठेगी और फिर हम उस जल्लाद को नहीं छोड़ेंगे, जिसने हमारी बच्ची के साथ इतनी घिनौनी हरकत की है।" नूर के बड़े अब्बू की ये अवाज सुन, नूर की अधमरी माँ, जो इतने दिनों से अपने कमरे से बाहर नहीं आयी थी, चिल्लाते हुए आई और नूर के बड़े अब्बू की गर्दन दबोचने लगी।

"तुम्हीं ने नूर के साथ ये किया है, मैं तुम्हें ज़िंदा नहीं छोडूंगी।"

नूर के पिता और पड़ोसियों ने बड़ी मुश्किल से नूर की माँ को हटाया। कमज़ोर माँ इतने में ही बेहोश हो गई। नूर के अब्बू को कुछ समझ ही नहीं आया। उनको तो अपने बड़े भाई की हरकतों का पता ही नहीं था। वो तो अपने बड़े भाई से अपनी पत्नी की इस हरकत के लिए माफी मांग रहे थे।

उसके दो दिन बाद अस्पताल से खबर आई कि नूर ने अस्पताल में दम तोड़ दिया है, वो बच्ची मौत से लड़ ना पाई।

सपनों के महल जो नूर और उसकी माँ ने सजाये थे वो सब खत्म हो गए थे। उसकी मौत से पूरा मुहल्ला, उसके स्कूल के दोस्त, यहाँ तक कि उसके अध्यापक ग़मगीन हो गए थे। एक तो उसके जाने का दुख और एक सवाल जो सब को खा रहा था,

"क्या नूर को इंसाफ मिलेगा?"

अब तक तो नहीं मिला…शायद।

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