JUNE 10th - JULY 10th
25 सालों के लंबे अंतराल के बाद रेशम और सरु एक दूसरे के आमने-सामने थे।
रेशम के बालों में सफेदी थी सरु के बाल मेहंदी से लाल रेशम ने लाल चौखाने की शर्ट पहनी हुई थी सरु ने सफेद साड़ी।
रेशम की आँखों में चमक थी वैसी ही जब वो कॉलेज में होने वाली प्रतियोगिताओं में बोलता था धुआँधार सरु के चेहरे पर थी सौम्य मुस्कान वैसी ही जब वो मंच पर गाती थी, ‘रात जो चांदनी मली थी तूने गालों पर सारा आलम चमक उठा’ दोनों की आँखे टकराई एक पल में जैसे सदी गुजर गयी फिर कुछ पल और कुछ सदियाँ। इस मौन में कितना सुकून था आनंद था। तभी पेड़ से चिड़ियों का एक झुण्ड उड़ा चीत्कार करता हुआ शायद कौऐ या किसी साँप ने उनके घरौंदे पर नजर डाली थी। दोनों के बीच पसरे मौन ने कुछ कहना चाहा पर कौन सा सिरा पकड़ा जाए जो सब उलझन को सुलझा दे क्या आसान होता है बीते हुए वक्त को अपने मनचाहे रंगों में फिर से बुन लेना। कैसी हो सरु रेशम ने हौले से पूछा। सरु की आंखों से एक आँसू लुढ़क कर गाल पर अटक गया। रेशम ने हाथ बढ़ाया सरु ने समेट लिया उस आँसू को अपने हाथों में दर्द का इक कतरा भी क्यूँ कर किसी के पास जाए क्यूँ बाहर आए। संभाला है न सब कुछ अपने आप।
मुस्कुराते हुए बोली कॉफी पीने चलें।
कॉफी कॉफी कॉफी ... यादों के कितने ही सतरंगी पंछी चहचहाने लगे खिलखिलाने लगे नाचने गाने लगे रेशम के आसपास ....
वो बचपन से भरी कॉफी ....
रेशु कॉफ़ी पियेगा
मम्मी-पापा लोग पीते हैं कितनी चमकती है न उनकी स्किन
नहीं रेशम के फुले गाल और फूल जाते बच्चे कॉफ़ी नहीं पीते मैं तो दूध पीता हूँ।
अरे मम्मा से परमीशन लेकर पियेंगे और रेशम की हाँ सुनने से पहले ही भागती हुई सरु कॉफ़ी ले आती सफेद रंग के दो मग में मिकी और मिनी माउस वाले।
छोटी सी प्लेट में चार कुकीज़ भी कॉफ़ी का हल्का सा कड़वा स्वाद दोनों को ही भा गया एक साथ और उससे भी ज्यादा वो हल्की-भूरी मूँछें जो बन गयी थीं कॉफी पीने के बाद। तेरी मूँछ मेरी मूँछ कहते चिढ़ाते बेतहाशा उन्मुक्त हँसी वाला ये अनौपचारिक कॉफ़ी पर्व संपन्न हो जाता .... हाथों की छोटी-छोटी उँगलियों से कॉफ़ी मूँछ पोंछते हुए। कुछ यादें कितनी गहरे अंकित हो जाती हैं न दिमाग पर....जैसे अभी गुज़री हों।
फिर वो किशोर होती कॉफ़ी
कॉफ़ी पियेगा रेशु?
हाँ ले आ तेरा वो स्किन चमकाऊ काढ़ा और उस दिन सरु कॉफ़ी लाई थी दो सफ़ेद मग में जिस पर छोटे-छोटे लाल दिल बने हुऐ थे। धीरे-धीरे कॉफ़ी ले कर आती हुई सरु कितनी आकर्षक लग रही थी रेशम के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई। ओय कहाँ खो गया सरु ने रेशम के आगे कॉफ़ी रखते हुऐ कहा।
तुझमें ... और रेशम की उँगलियों ने सरु के होंठों को छू दिया अपनी सिरहन सरु को देते हुऐ। सरु काँप गयी कुछ न बोली चुपचाप कॉफ़ी पी कर चली गयी।
लगता है बड़ी ग़लती हुई है मुझसे उस रात रेशम ने खाना नहीं खाया।
फिर वो जवान होती कॉफ़ी
ऊर्जा अपने चरम पर उमंग-उत्साह अपने चरम पर। कॉफ़ी के छोटे-छोटे सिप लेते हुऐ घंटो बतियाना लड़ने की हद तक वाद-विवाद करना रेशम का सरु की चोटी खींचना और सरु का रेशम के घने बालों की चोटी बनाना एक भी दिन न मिलने पर दोनों का तड़प-तड़प जाना अगर ये दोस्ती से आगे बढ़ कर कोई बात थी तो हाँ तो वो प्यार भी था अपने चरम पर। सरु के हर छोटे से लेकर बड़े सवालों का जवाब देता रेशम उसके लिए चलता फिरता एनसाइक्लोपीडिया बन गया था।
और फिर वो कभी न मिलने वाली कॉफी
रेशम के कट्टर राजपूत और सरु के कट्टर ब्राह्मण परिवार ने पल भर में बरसों की दोस्ती को ख़त्म कर लिया। कॉफ़ी के ताज़ा पिसे बीजों से भी ज़्यादा कड़वाहट घुल गयी उनके सम्बन्धों में।परम्पराऐं जो रूढ़ियों में बदल चुकी थीं उनकी दुहाई देते हुऐ दोनों परिवार दूर बहुत दूर हो गए जो शायद सदियों पहले किसी एक कुनबे का हिस्सा थे। रेशम की माँ ने उसे रोते हुऐ विदा दी प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी के लिए छोटे शहर से बड़े शहर की ओर। इतिहास का विद्यार्थी रेशम सरु के लिए एक इतिहास बन गया। सरु के माता-पिता ने रोते हुऐ उसे विदा किया बड़े से खानदानी पंडित परिवार के लिए। भरपूर दान-दक्षिणा और भेंट पूजा का आनंद लेते हुऐ मोटे पंडित जी जल्दी ही स्वर्ग सिधार गए। सरु वापस अपने मम्मी पापा के घर आ गयी। रीति रिवाज़ तो सब ठीक ही किये थे अब ये तो लड़की का भाग्य है जो हुआ सो हुआ। प्रशासनिक अधिकारी बनने के बाद रेशम का विवाह भी एक अच्छे परिवार की कन्या से हो गया। पोता-पोती को गोद में खिलाने का सुख माँ को जल्दी ही प्राप्त हुआ पिता इस ख़ुशी को नहीं देख पाये।
झाग वाली कॉफ़ी में बना दिल हिला और रेशम जैसे अनंत यात्रा करता हुआ अचानक वर्तमान क्षण में आ गया।
घर चलोगी सरु अपने परिवार से मिलवाना चाहता हूँ तुम्हे फिर जैसे दिल से आवाज़ आयी मैं छोटा था कमज़ोर था कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं था कर भी नहीं सकता था रेशम फूट-फूट कर रोने लगा। ये रोने वाली ग्रंथी किस परंपरा के अंतर्गत लड़कों में सुखा दी गयी थी रेशम की आँखों में तो ये पूरी तरह सक्रिय है कहाँ छुपे थे ये आंसू। सरु ने अपना हाथ रेशम के हाथ पर रख दिया न कोई लालसा न ही कामना। स्थिरता है ठहराव है इन क्षणों में। घर चलें सरु ने कॉफ़ी का पेमेंट करते हुऐ कहा। बरसों के बिछड़े परिवार फिर से मिले रेशम की बूढी माँ को अपनी खोई बिटिया मिल गयी और रेशम की बेटी तो सरु आंटी की दीवानी ही हो गयी है। दोनों खूब शॉपिंग करती हैं हँसती हैं खिलखिलाती हैं बतियाती हैं। परम्पराओं को नहीं पर रूढ़ियों को तो ख़त्म करना ही होगा रेशम और सरु अब ये सोचते हैं और करते-मानते भी हैं। रेशम की पत्नी गौरी अक्सर उससे मज़ाक में कहती है लो आ गयी तुम्हारी सहेली तुम दोनों बतियाओ मैं कॉफ़ी पर्व की तैयारी करती हूँ।
हर रिश्ता अपने अंजाम पर नहीं पहुंचता पर वो बना रहे जीवन भर तुम्हारे साथ ये क्या काम ख़ूबसूरत बात है।
शिल्पी
#16
தற்போதைய தரவரிசை
20,627
புள்ளிகள்
Reader Points 15,960
Editor Points : 4,667
326 வாசகர்கள் இந்தக் கதையை ஆதரித்துள்ளார்கள்
ரேட்டிங்கஸ் & விமர்சனங்கள் 4.9 (326 ரேட்டிங்க்ஸ்)
pradeep2005pal
Real story
Anupam2004
vandanagupta00581
Description in detail *
Thank you for taking the time to report this. Our team will review this and contact you if we need more information.
10புள்ளிகள்
20புள்ளிகள்
30புள்ளிகள்
40புள்ளிகள்
50புள்ளிகள்