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Vivek SreedharAuthor of Ketchup & Curryलेखन एक ऐसी कला है जो हमें कलम के माध्यम से जीवन , समाज , प्रकृति इत्यादि से रूबरू कराती है। मैं स्वयं अपनी कलम के जरिये प्रत्येक वस्तु से जुड़ाव महसूस करती हूँ। कुछ लोगों का कहना है कि लेखक सिर्फ खुद के सुख दुख भाव ही लिखता है। लेकिन मेरा ऐसा मानना है की हम अपने आसपास जो देखते हैं , हमारे अन्दर वैसे ही भाव उमड़ते हैं। उन उमड़े जज्बातों को हम कोरे पन्नों पर शब्दों का रूप देते हैं। स्वतन्त्र लेखन में दिल के जज्बातों को खूबसूरती से लिखा और महसूस किया जाता है। दूसरी ओर भाव की अभिव्यक्ति अगर सरल शब्दों में हो तो पाठक के मन को छू जाती है। मेरी कोशिश यही रहती है कि अपने लेखन को भाव प्रधान रखते हुये सरल भाषा का प्रयोग करूं। अपने शब्दों को विराम देते हुये इतना ही कहूंगी.........
पढ़ते रहे किताबों में दूसरों के जज्बातों को
खुद को कभी पढ़ा नहीं ढ़ोते रहे हालातों को
दे सकते थे जवाब मगर चुनते रहे सवालातों को
मेरी चित्कला कोरे कागज पर शब्दों की माला पिरोती है। गृहणी हूँ अतः प्रत्येक लेखन में कहीं खुबसूरत जिन्दगी के अहसास हैं तो कहीं रिश्तों की खुशबू है। कहीं तन्हाईयों का आलम है तो कही
मेरी चित्कला कोरे कागज पर शब्दों की माला पिरोती है। गृहणी हूँ अतः प्रत्येक लेखन में कहीं खुबसूरत जिन्दगी के अहसास हैं तो कहीं रिश्तों की खुशबू है। कहीं तन्हाईयों का आलम है तो कहीं इश्क की दीवानगी। कुल मिलाकर भरपूर रंगों का इन्द्रधनुष है मेरे लफ़्ज़ों का गुलदस्ता में। स्वतन्त्र लेखन में भावनात्मक परिपेक्ष का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अतः समाज के प्रत्येक भाग को समझने और आपको बताने की कोशिश करती हूँ। आम पाठक को मेरी कवितायें आसानी से समझ में आयें इसलिये सरल भाषा का ही प्रयोग करती हूँ। दोस्तो मेरी सभी पुस्तकों का कवर डिजाईन मेरी बेटी डा० सुरभि ने किया है।
हमारे देश में बहोत से महान शायर हुये हैं। जो भी थोडा बहुत मैंने उन्हे पढा है उसी से सीिकर अपनी#नूर-ए-आफ़ताब* पुस्तक में र्लिने की कोर्शश की है। महान शायरों के आगे मैं ततनका मात्र हू
हमारे देश में बहोत से महान शायर हुये हैं। जो भी थोडा बहुत मैंने उन्हे पढा है उसी से सीिकर अपनी#नूर-ए-आफ़ताब* पुस्तक में र्लिने की कोर्शश की है। महान शायरों के आगे मैं ततनका मात्र हूूँ लेककन इस पुस्तक को मैं उन्ही को समर्पित करती हूूँ।
हिन्दी हमारी मातृभाषा तो जरूर बन गई है लेकिन हम लोग इस पर ध्यान कितना देते हैं वो देखने वाली बात है .... बाहर के देश... चीन हो या जापान ... जर्मनी...फ्राँस ... इटली.. आस्ट्रिया... रूस आदि जैसे दे
हिन्दी हमारी मातृभाषा तो जरूर बन गई है लेकिन हम लोग इस पर ध्यान कितना देते हैं वो देखने वाली बात है .... बाहर के देश... चीन हो या जापान ... जर्मनी...फ्राँस ... इटली.. आस्ट्रिया... रूस आदि जैसे देश अपनी भाषा में ही बात करते हैं चाहे किसी दुसरे देश के प्रतिनिधि से ही क्यों ना बात करनी हो...... लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं होता..... हम सबकी कोशिश होनी चाहिये की जितना हो सके हम हिन्दी का प्रसार करें... बहुत सुन्दर भाषा है हमारी..... हमारे देश के तीन नामकरण हुए – भारत, हिन्दुस्तान और इंडिया … लेकिन असलियत में हमारे देश का नाम भारत है... बाकी दो नाम विदेशियों ने अपनी सहुलियत के हिसाब से दिये हैं ......... कहते हैं हमारे देश में अनेकता में एकता है ..... लेकिन क्या सही मायने में एकता है ..... ?... मुझे लगता है नहीं ... इसी पर मैनें अपनी पुस्तक में भी एक रचना लिखी है। दोस्तो मेरी पुस्तक " उत्सव : कविताओं की कुसुमावली " में आपको अनेक रंग मिलेंगे। उम्मीद करती हूँ आपको इन रंगों का इन्द्रधनुष शानदार और रोचक लगेगा। मेरी पुस्तक का प्राक्कथन मशहूर लेखक " राश दादा "# जीना चाहता हूँ मरने के बाद " ने किया है । इनके बारे में जो कहूंगी वह कम ही है । कृतज्ञ हूँ
मेरी दुसरी पुस्तक "बेटी की पाती" को मैंने मेरी माँ और पिताजी को समर्पित किया है। माँ बच्चों की गुरु होती है । जिनके साये में बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते हैं। मेरे लिये दोनों ही म
मेरी दुसरी पुस्तक "बेटी की पाती" को मैंने मेरी माँ और पिताजी को समर्पित किया है। माँ बच्चों की गुरु होती है । जिनके साये में बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते हैं। मेरे लिये दोनों ही मेरी प्रेरणा रहे हैं। माँ अब इस दुनिया में नहीं है मेरी माँ की सोच औरतों के प्रति बहुत मान सम्मान वाली थी । उनकी इसी सोच की वजह से मैनें इस पुस्तक में बेटीयों तथा औरतों के सामाजिक परिवेश को आप तक पहुंचाने की कोशिश की है । मेरे पिता का आशीष अभी मेरे सिर पर है। उन्होंने सन् 1957 में अध्यापन के क्षेत्र में कार्य शुरू किया और अनेकों उपलब्धियां हासिल की। शिक्षा और खेल को बढ़ावा दिया। कई बार गांव की पंचायतों के द्वारा ईनाम हासिल किये। अन्त में सन् 1988 में प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत हुये। मेरी खुशनसीबी है जो 90 साल की आयू में उन्होनें मेरी पुस्तक को अपनों शब्दों के माध्यम से आशीष दिया। आप दोनों को सादर नमन करती हूँ और आपके स्वस्थ रहने की कामना के साथ अपने शब्दों को विराम देती हूँ..... आपकी बेटी ... उर्मिल श्योकन्द ।
मेरी यही कोशिश रहती है कि मैं आम जनता को अपने स्वतन्त्र लेखन के माध्यम से अपने जज्बात पहुंचा सकूँ । प्रथम प्रयास है ... इस पुस्तक को मैनें #इज़हार का नाम दिया है । अनेक नज़्म तथा छोटी -
मेरी यही कोशिश रहती है कि मैं आम जनता को अपने स्वतन्त्र लेखन के माध्यम से अपने जज्बात पहुंचा सकूँ । प्रथम प्रयास है ... इस पुस्तक को मैनें #इज़हार का नाम दिया है । अनेक नज़्म तथा छोटी - बड़ी रचनाओं के माध्यम से अपने पाठकों के दिल में उतरने की कोशिश की है ।आशा करती हूँ ज्यादा से ज्यादा लोगों के दिलों में अपनी जगह बना सकूं... आप सभी पाठक गण का प्यार और आशीष मेरे लिये अपेक्षित है। धन्यवाद सहित.... श्रीमती उर्मिला श्योकन्द .... @urmil59#चित्कला इज़हार पुस्तक के कवर पेज पर जो तन्जोर पेन्टिंग बनी है वह पुस्तक की लेखिका श्रीमती उर्मिला श्योकन्द द्वारा बनाई गई है। जिसमें semi precious stones and gold foil का इस्तेमाल किया गया है। यह कला दक्षिण के तन्जावुर गांव की प्रसिद्ध कलाओं में से एक है।
लघू कहानी ........ #मानवता सबसे बड़ा धन है कुछ दिन पहले ही पति का तबादला दिल्ली हुआ । वो एक प्राईवेट कम्पनी में इंजीनियर Read More...
ज्ञान का प्रकाश कभी कभी मन क्याें बैचेन होता है... वह भी इस हद तक की ना कुछ बात करने का मन है ना ही कोई काम करने का। ऐसे ल Read More...
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