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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalShashi Kumar Born- 1996 Shivpur Laugain, Haveli Kharagpur, Munger. Education- Graduation from Bhagalpur University. Write on social work and different types of inequalities spread in the country. Other compositions – Last Exam, Kasak, Mere Ezbaat etc. Read More...
Shashi Kumar Born- 1996 Shivpur Laugain, Haveli Kharagpur, Munger. Education- Graduation from Bhagalpur University. Write on social work and different types of inequalities spread in the country. Other compositions – Last Exam, Kasak, Mere Ezbaat etc.
यहाँ प्रस्तुत कविताएं समाजिक व्यवस्थाओं पर आधारित है, यदि हम तटस्थ होकर सोचें तो क्या आजादी के इतने दिनों बाद भी क्या सही माइने में हमारी स्थिति में कोई सुधार हुआ है? आम जनता आज भ
यहाँ प्रस्तुत कविताएं समाजिक व्यवस्थाओं पर आधारित है, यदि हम तटस्थ होकर सोचें तो क्या आजादी के इतने दिनों बाद भी क्या सही माइने में हमारी स्थिति में कोई सुधार हुआ है? आम जनता आज भी वही गरीबी,शोषण और भ्रस्टाचार से पीड़ित है। आज देश में जितना साकार बेलगाम हुई है, उससे ज्यादा यहाँ अफसरशाही बढ़ी है।
आज हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि आखिर क्यों आजादी के इतने दिनों के बाद भी परिस्थितियाँ जस-की-तस है। आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग अशिक्षित, और विकट परिस्थितियों में अपना जीवन-यापन कर रहे हैं।
आज तक अनेकों देश के भाग्यविधाता बनें लेकिन देश का भाग्य क्यों नहीं बदल सका। अगर देश के भाग्य को बदलने की क्षमता किसी में न होती है तो क्यों स्वयं को भाग्यविधाता कहलवाते हैं।
अपने-अपने मजदूरी के क्षेत्र में संघर्ष कर रहे हैं। बाल,युवा,महिला,बुजुर्ग,खेतिहर, वन पर आश्रित हर प्रकार के मजदूरों का जीवन परिचय उनका संघर्ष इस कवित्त-संग्रह में लिखने का प्रया
अपने-अपने मजदूरी के क्षेत्र में संघर्ष कर रहे हैं। बाल,युवा,महिला,बुजुर्ग,खेतिहर, वन पर आश्रित हर प्रकार के मजदूरों का जीवन परिचय उनका संघर्ष इस कवित्त-संग्रह में लिखने का प्रयास किया गया है। बेहद ग्लानि के साथ लिखना पड़ रहा है कि बहुत से लोग इनके दुखों का उपहास भी करते हैं, इनकी विवशता को नाटक भी कहते हैं। पता नहीं मेरे लिखने से इनके जीवन में बदलाव हो ही जाय मैं मैं ऐसा दावा नह करती। लेकिन हां ये वो लोग है जो कभी अपनी बात कह नहीं पाते हैं। मैं केवल उनकी आवाज बनने का माध्यम भर हूँ। हां आशा तो सदैव ही रहती है कि इनके जीवन में भी बदलाव हो, विशेष करके वो बच्चे जो कभी स्कूल नहीं जा पाते, पेट भरने के लिए तरह-तरह के काम करते हैं, उन्हे मजदूरी करन पड़ता है। उनका जीवन भी सुलभ हो जाय। वो महिलायें जो अपने छोटे-बच्चों को कड़कड़ाती धूप में सुलाकर काम करती है,उसे समय से दूध भी नहीं पीला पाती, उसके जीवन में भी कुछ बदलाव हो। वो बुजुर्ग जिंक उमर आराम करने की है,वो आराम करे काम नहीं। युवा,वयस्क सभी को सुरक्षा और सम्मान मिले।
मेरे जज़्बात- मेरे जज़्बात कई हैं,समझने में शायद उन्हे देर लगे अभी उसकी दुनिया नई है। गिला-सिकवा तो उम्र-भर तुझसे रहेगा। क्या शिकायत करूं मैं तेरी जमाने से,ये जमाना भी
तो अब ते
मेरे जज़्बात- मेरे जज़्बात कई हैं,समझने में शायद उन्हे देर लगे अभी उसकी दुनिया नई है। गिला-सिकवा तो उम्र-भर तुझसे रहेगा। क्या शिकायत करूं मैं तेरी जमाने से,ये जमाना भी
तो अब तेरी तरफ है। फिर से गर कभी तेरे शहर में आना हुआ तो भी इसी हाल में आऊँगा।
‘मेरे जज़्बात’ ये मेरी दूसरी कविता-संग्रह है,मुझे वो दिन भी याद है जब मैंने कविता कि पहली पंक्ति लिखी थी,लेकिन तब मुझे ये मालूम नहीं था कि मैं लिखता ही चला जाऊंगा। स्कूल की चौखटों से लेकर महानगरों तक का सफर बहुत ही अनुभव देने वाला था। कभी दोस्ती,कभी दुनियादारी, सबकी समझ धीरे-धीरे आती रही। और सच बताउँ तो मैं कोई पेशेवर या खानदानी शायर नहीं हूँ। मैं तो बस वही लिखता हूँ जो जीवन में अनुभव करता हूँ। और मैं ही नहीं जहां तक मैं जानता हूँ कि अधिकतर कवि या शायर अपने अनुभवों को ही लिखते हैं। मेरा मानना है कि जब तक कोई अनुभव नहीं करता, वह किसी विषय पर नहीं लिख सकता है।
शशि कुमार, जन्म- बिहार, हवेली खड़गपुर में। प्रत्येक मुद्दे पर अपनी एक अलग विचार रखने वाले व्यक्ति के रूप मे जाने जाते हैं। वर्तमान समय में समाज में व्याप्त कुछ कुरीतियों के संबंध
शशि कुमार, जन्म- बिहार, हवेली खड़गपुर में। प्रत्येक मुद्दे पर अपनी एक अलग विचार रखने वाले व्यक्ति के रूप मे जाने जाते हैं। वर्तमान समय में समाज में व्याप्त कुछ कुरीतियों के संबंध में एवं उन कुरीतियों के कारण समाज में उत्पन्न बुराइयों पर लिखना अधिक पसंद करते है। प्रस्तुत कहानी ग्रामीण परिवेश के इर्द-गिर्द घूमती हुई विदेश की यात्रा पे भी निकल पड़ती है। इस कहानी में रोजगार के मुद्दे को केंद्र में रखा गया है।
वेदना, स्त्री की वेदना है। मैंने व्यथा के इस व्यवस्थित समूह में से कुछ विषयों को चुना है। बेटी के जन्म को लेकर आज भी अधिकतर लोग उतनी प्रसन्नता व्यक्त नहीं कर पाते जितनी खुशी पुत्र
वेदना, स्त्री की वेदना है। मैंने व्यथा के इस व्यवस्थित समूह में से कुछ विषयों को चुना है। बेटी के जन्म को लेकर आज भी अधिकतर लोग उतनी प्रसन्नता व्यक्त नहीं कर पाते जितनी खुशी पुत्र के जन्म पर होती है। मैं ऐसा नहीं कहूँगी कि हर क्षेत्र में महिला की स्थिति दयनीय है, कई स्थानों पर इन्हें अवसर मिला है। लेकिन कहीं-न-कहीं इसकी स्थिति के लिए केवल पुरुष जिम्मेवार नहीं है, बहुत सी महिलएं हैं जो इन महिलाओं के दुख का कारण है। जैसा कि मैंने कहा कि कुछ विषयों को चुना है,उन विषयों में कही कुछ सकारात्मक भी देखने-सुनने को मिलता है। लेकिन एक विषय में मैं बताना चाहूँगी जहां कि स्थिति अत्यंत भयावह है। वो है दहेज की कुप्रथा। समय के साथ इसने और बिभस्त स्वरूप धारण कर लिया है, हमारे देश में किसी अंधविश्वास की बात हो या फिर जात-पात दहेज तो हम उसे गरीबी और अशिक्षा की चादर ओढ़कर उसे ढ़क देते हैं।
लोकतांत्रिक देश के अंग्रेज उनलोगों के संदर्भ में मैंने कहा है जो कि कहने को तो वे लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कार्य करते है परंतु ऐसे लोगों के संरक्षण में लगे रहते हैं जो लोकतंत्
लोकतांत्रिक देश के अंग्रेज उनलोगों के संदर्भ में मैंने कहा है जो कि कहने को तो वे लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कार्य करते है परंतु ऐसे लोगों के संरक्षण में लगे रहते हैं जो लोकतंत्र को अपने जेब में लेकर घूमते हैं। कुछ हजार रुपये के लिए वो यह भूल जाते हैं कि उनका मूल दायित्व क्या है। रंगदारों,अताताईयों कि सुरक्षा करते हैं। ये लोग इतनी तत्परता किसी गरीब,असहाय कि सहायता के लिए नहीं दिखाते। आपराधिक प्रवृति वाले लोग किसी को भी जान से मारने की धमकी देते हैं। कहीं-कहीं मार भी देते हैं। इसकी वाणी सुनके भी ऐसा प्रतीत होता है कि आज भी स्वतंत्र भारत में अनेकों अंग्रेज हैं। जो कभी भी किसी पर गोलियां बरसा सकते हैं। यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक नहीं है इसमे का संवाद ऐसे हैं जो कहीं-ंंन-कहीं कहे-सुने गए हैं। हां इसको मैंने काल्पनिक तरीके से बुनने का किया है। ऐसे कृत्यों को देखकर,कुछ शब्दों को सुनकर मन बेहद व्यथित होता है। मैंने कहानी के माध्यम से अपनी पीड़ा कम करने का प्रयास किया है।मेरा तो बस इतना मानना है कि हमारे पूर्वजों ने हमारे अधिकारों के लिए,हमारी स्वतंत्रता के लिए अथक प्रयास किये,अपने प्राण न्योछावर किये उन अधिकारों कि रक्षा होनी चाहिए। केवल दस्तावेजों में नहीं वास्तविकता में। राज्य कोई भी हो समस्याएं सभी जगह व्याप्त है। निष्पक्ष भाव से सभी क नीड़ होना चाहिए। इस कहानी का सार यही है।
हिंदी कविता एवं शायरी से संबंधित इस क़िताब में कहीं गम भरी जीवन की कहानी है तो कही प्यार का इज़हार है ।इसे पढ़ते हुए आपको अपनी प्रेम कहानी जरुर याद आएगी।ये आप को आपके पुराने दिनों की
हिंदी कविता एवं शायरी से संबंधित इस क़िताब में कहीं गम भरी जीवन की कहानी है तो कही प्यार का इज़हार है ।इसे पढ़ते हुए आपको अपनी प्रेम कहानी जरुर याद आएगी।ये आप को आपके पुराने दिनों की यादों में ले जाएगी।
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