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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalM.phil in mass com.& jouranlism Writer, freelance journalist, Researcher, Translator, Documentary maker प्रस्तुत पुस्तिका में हिमचाल प्रदेश की सुकेत रियासत से संबंधित विभिन्न लेखों द्वारा लिखे गए लेखों का संकलन और संपादन किया गया है। इस पुस्तिका को खास बनाते हैं तुलसी राम गुप्ता के लेख जोकि Read More...
M.phil in mass com.& jouranlism
Writer, freelance journalist, Researcher, Translator, Documentary maker
प्रस्तुत पुस्तिका में हिमचाल प्रदेश की सुकेत रियासत से संबंधित विभिन्न लेखों द्वारा लिखे गए लेखों का संकलन और संपादन किया गया है। इस पुस्तिका को खास बनाते हैं तुलसी राम गुप्ता के लेख जोकि सुकेत रियासत में हुए अंतिम विद्रोह के दौरान बालक थे और उनके पिता दिला राम महाजन सुकेत रियासत की करसोग तहसील के रियासती प्रजामंडल संगठन के अध्यक्ष थे। उनको कई बार राजा के गुस्से का शिकार होना पड़ा। तुलसी राम गुप्ता ने अपने पिता जी से सुन-सुन कर अपनी डायरी में कई बाते नोट की थी जो कि प्रजा मंडल आंदोलन के बारे में जानकारी का प्रथम स्रोत है। जब हम उनके पास प्रजा मंडल आंदोलन पर चर्चा करने गये तो उन्होंने चर्चा के बाद पहली बार में ही उन्होंने हमें अपनी पांडुलिपी सौंप दी, और यह भी दुख व्यक्त किया कि कई पत्रकार उनके लेख ले गये और अपने नाम से छपवा लिए।
दूसरी उपलब्धी है डा. चमन लाल मल्होत्रा के लेख, इंटरनेट पर ‘हिमाचल प्रदेश के क्रांतिकारी इतिहास’ नाम से मौजूद किताब जब हमें मिली तो हमने उसको प्रिंट करवा कर खूब पढ़ा। किताब काफी पुरानी थी और कहीं प्रिंट एडिशन मौजूद नहीं था। फिर हमने लेख को ढूंढने के प्रयास किये तो पता चला कि वे अब इस दुनिया में नहीं रहे। लेखक का परिवार क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ा रहा है, इस लिए उसमें काफी प्रमाणिक जानकारी थी, लेखक खुद भी सुकेत रियासत से अलग हुई मंडी रियासत से आते थे। उस पुस्तक से गदर की गूंज, सुकेत के दुम्ह (विद्रोह) आदि लेख लिए गये हैं। इसके अलावा एक लेख इतिहासकार अनिकेत आलम और तीन लेख गगनदीप सिंह के हैं। एक साक्षात्कार तेज राम का है जो सुकेत रियासत की राजधानी रही पांगना के नजदीक चाय की दुकान चलाते हैं।
पुस्तिका में सुकेत के प्राचीन इतिहास से लेकर भारत में विलय और भूमि सुधारों तक काल की घटनाओं को समेटने की कोशिश की गई है। पुस्तिका में सुकेत विद्रोह में भाग लेने वालों की सूचि बनाने और प्रदान करने के लिए डा. जगदीश शर्मा, गिरधारी सिंह ठाकुर, श्याम सिंह चौहान का हार्दिक आभार। तुलसी राम गुप्ता की पांडु लिपी को टाईप करने के लिए सोनी सिंह का धन्यवाद। पुस्तिका में फोटो भाषा विभाग द्वारा प्रकाशित किताब से लिए गए हैं।
पुस्तिका को सहयोग देने और लगातार प्रोत्साहित करने वाले पत्रकार साथी धर्मवीर गौतम, निका राम शर्मा, राज सोनी, रश्मि राज भारद्वाज, दिनेश बावा, नरेंद्र शर्मा, कुलभूषण वर्मा, महेंद्र कपुर का बहुत-बहुत धन्यवाद। लगातार प्ररेरित करने वाले समाजसेवी बंसी लाल कौंडल, नेक राम शर्मा, कैप्टन चेतराम, हंसराज ठाकुर, संतराम, चेतराम को हार्दिक प्रणाम।
पुस्तिका पर आलोचना, सुझाव आमंत्रित हैं। अगर कोई त्रुटि रह गई है तो बेजिझक अवगत करवाएं, हम उसको सुधारने की कोशिश करेंगे।
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आज हम समाज में देख रहे हैं कि एक गांव में, शहर में या बस्ती में हमारे आसपास बहुत सारे परिवार रहते हैं। हम खुद भी किसी न किसी परिवार का हिस्सा हैं। परिवार के अंदर पति-पत्नी, बेटा-बेटी
आज हम समाज में देख रहे हैं कि एक गांव में, शहर में या बस्ती में हमारे आसपास बहुत सारे परिवार रहते हैं। हम खुद भी किसी न किसी परिवार का हिस्सा हैं। परिवार के अंदर पति-पत्नी, बेटा-बेटी, मां-बाप इस तरह सगे संबंधी बहुत सारे होते हैं। परिवार में एक मुखिया होता है। उसी पुरूष के अधीन वह परिवार चलता है।
परिवार का यह रूप कब से हैं, कैसे ऐसे परिवारों का गठन हुआ। क्या यह प्रश्न आपके दिमाग में उठता है।
क्या यह निजी संपत्ति, किसी एक व्यक्ति का ऐसी चीजों पर मालिकना हक शुरू से ही चला आ रहा है। मेरा तेरा कब से शुरू हुआ। आज हम सरकार या कहें राजसत्ता भी देखते हैं। यह कैसे और कब शुरू हुई। ऐसे ही सवालों का जवाब देने की कोशिश करती है यह किताब।
This is an attempt to comprehend the dependent economy of Himachal Pradesh in particular and India in general. I argue that this dependency is created through an institutional mechanism designed to ensure structural flow of capital in geographical space of Himachal Pradesh. This flow of capital is exploitative for the people here. The institutions which creates such flow are those which serves the cause of monopoly corporations and financial institutions, thes
This is an attempt to comprehend the dependent economy of Himachal Pradesh in particular and India in general. I argue that this dependency is created through an institutional mechanism designed to ensure structural flow of capital in geographical space of Himachal Pradesh. This flow of capital is exploitative for the people here. The institutions which creates such flow are those which serves the cause of monopoly corporations and financial institutions, these corporate bodies are represented through state institutions that ensures export of their capital in different geographical locations. Such capital colonizes the region and produce a space of particular kind where the capital is superimposed on societies that have not seen capitalist revolution. Such capital tends to prevent progression in society, it blocks the development of society by hampering the development of productive capacity of human labour, the colonizing power of such capital can be better termed as imperial capital . The flow of imperial capital rests on resource exploitation; resource like water, land, forest and mountains crumbles at the presence of capital, that is to say these resources provides the space for valorisation of capital (valorisation is increase in value of the capital) and the capital in turn produces new social, economic and political space .
जितनी पाठकों से आशा थी उससे कहीं ज्यादा प्यार इस पुस्तक को मिला। पिछले साल सितंबर में इसका पहला संस्करण प्रकाशित हुआ था। अब इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें बहुत खुशी
जितनी पाठकों से आशा थी उससे कहीं ज्यादा प्यार इस पुस्तक को मिला। पिछले साल सितंबर में इसका पहला संस्करण प्रकाशित हुआ था। अब इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें बहुत खुशी हो रही है। बहुत सारे जागरूक पाठकों ने प्रूफ की गलतियां बताई हैं, उनको दूर करने का प्रयास किया गया है। पुस्तक लोगों तक पहुंची तो कई और स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में पता चला। उनमें से तीन का संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं। वहीं कुछ का पता चला लेकिन उनके बारे में लिख नहीं पाए, अगले संस्करण में जरूर उनके बारे में लिखवाने की कोशिश की जाएगी।
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