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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalThere are very few poets like Devesh "Alakh" in contemporary Hindi literature who have written poems on varied topics which range from satire to romance, from human weaknesses to beauty of nature. His poetry is characterized by simple and everyday language and images which string together to convey complex themes. While his succinct style of poetry easily connects with readers, his satires are declamatory and profound which forces readers to think and ponder. Readers call his inimitable style of writing "Alakh Andaaz". He has been working in Government of Rajasthan for the last twenty nine yeaRead More...
There are very few poets like Devesh "Alakh" in contemporary Hindi literature who have written poems on varied topics which range from satire to romance, from human weaknesses to beauty of nature. His poetry is characterized by simple and everyday language and images which string together to convey complex themes. While his succinct style of poetry easily connects with readers, his satires are declamatory and profound which forces readers to think and ponder.
Readers call his inimitable style of writing "Alakh Andaaz".
He has been working in Government of Rajasthan for the last twenty nine years and has held responsible posts in government but writing poetry has always been his first love. He wrote his first satire at the age of thirteen. He has participated in All India Kavi Sammelans and shared stage with luminaries of Hindi poetry like Gopaldas Neeraj, Kumar Vishwas to name a few.
His second book "ख़्वाब अधखुली आँखों के" ("Khwab Adhkhuli Aanknon Ke") is now amongst the readers along with his first book "कुछ पल... अपने पल" ("Kuch Pal... Apne Pal").
Date of Birth : 09 August.
Education : MA, M.Phil., Ph.D. in History.
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देवेश 'अलख' वो सजग रचनाकार हैं जिनकी कहानियाँ जब आप एक बार पढ़ना शुरू करते हैं तब आप केवल रोचक कहानी ही नहीं पढ़ते है अपितु कहानी पढ़ते हुए अपने समाज का अवलोकन भी करते हैं &nb
देवेश 'अलख' वो सजग रचनाकार हैं जिनकी कहानियाँ जब आप एक बार पढ़ना शुरू करते हैं तब आप केवल रोचक कहानी ही नहीं पढ़ते है अपितु कहानी पढ़ते हुए अपने समाज का अवलोकन भी करते हैं समाज का भी और व्यक्ति का भी। प्रस्तुत कहानी संकलन की अधिकांश कहानियाँ ऐसी ही हैं जहाँ आप कथा रस के प्रवाह में बहते हुए अनायास ही अपने समय और समाज से रू-ब-रू होते चलते हैं। यहां नई पीढ़ी के जीवन में आ रहे भटकाव हैं, उसकी आशाएं-आकांक्षाएं हैं तो ज़िंदगी के किनारे जा लगी पीढ़ी के मन पर पड़ रही उपेक्षा की खरोंचों की व्यथा भी है। यहाँ समाज में व्याप्त ऊंच-नीच और ग़रीब-अमीर के बीच की खाई है तो वो सूत्र भी है जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है। एक तरह से इन कहानियों को पढ़ना आज के भारतीय समाज से साक्षात्कार करना है।
हर रचनाकार अपनी रचना की ज़रूरत के हिसाब से यथार्थ की काट-छांट करता है। यह काम इस संग्रह के कथाकार देवेश सूद ने भी किया है, और मैं ज़ोर देकर कहना चाहूंगा कि बखूबी किया है। जब आप इन कहानियों को पढ़ेंगे तो आप पर भी इन कहानियों का वही असर होगा जो मुझ पर हुआ है। ये आपको बांधती है और बांधने के बाद आपके सोच को उस दिशा में ले जाती हैं जिस दिशा में रचनाकार ले जाना चाहता है. और वह दिशा है एक समतामूलक और न्याय आधारित समाज की। ये कहानियाँ हमें मानसिक रूप से एक ऐसी समाज व्यवस्था का आकांक्षी बनाती हैं जहां न कोई असमानता हो, न शोषण, न अलगाव न अकेलापन न असम्वेदनशीलता। निश्चय ही ये कहानियाँ आपके सोच को नई धार देंगी और आपको आश्वस्त करेंगी कि आज भी सार्थक साहित्य लिखा जा रहा है!
- डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल, प्रसिद्ध लेखक एवं आलोचक
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