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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palश्रीमती कुमारी रूपा पति स्वर्गीय श्री विनय कुमार दास ,ग्राम ओरई जानकीपुर ,थाना—अमरपुर ,जिला बांका ,एक मध्यम परिवार बांका जिला १९५४ में जन्म हुआ │पिता श्री विजय कृष्ण घोष ,माता श्रीमती अन्नपूर्णा देवी की तीसरी संतान साहित्य में जRead More...
श्रीमती कुमारी रूपा पति स्वर्गीय श्री विनय कुमार दास ,ग्राम ओरई जानकीपुर ,थाना—अमरपुर ,जिला बांका ,एक मध्यम परिवार बांका जिला १९५४ में जन्म हुआ │पिता श्री विजय कृष्ण घोष ,माता श्रीमती अन्नपूर्णा देवी की तीसरी संतान साहित्य में जन्मजात रुचि │ विवाहोपरांत लाख मुश्किलों के वावजूद भी दो बार स्नातकोत्तर की डिग्री भी प्राप्त किया │ पी एच डी के थीसिस भी तैयार किया │ पर दो पुत्र के जन्मोपरांत उनके पालन पोषण को छोड़ कर अपनी रुचि का कभि ख्याल नहिं आया │जब वे उनकी जिम्मेदारी से पुर्ण मुक्त हुईं तब जाकर इनकी सोई हुई जन्मजात लालसा पुनः जाग्रत हो गई │इन्होंने सैकडों छोटी बड़ी कविताएं ,दर्जनों कहानियां उपन्यास की रचना किया │
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इस पुस्तक की रचना राम कथा, और भागवत पुराण की कथा, को पद्य वद्ध करते हुए यथार्थ ज्ञान बच्चों तक पहुँचने के उद्येश्य से किया गया है। राम या कृष्ण के अनेकों चरित्र रामायण या भागवत पुर
इस पुस्तक की रचना राम कथा, और भागवत पुराण की कथा, को पद्य वद्ध करते हुए यथार्थ ज्ञान बच्चों तक पहुँचने के उद्येश्य से किया गया है। राम या कृष्ण के अनेकों चरित्र रामायण या भागवत पुराण में वर्णित हैं, जिसे कविता रूप में पढ़ कर बच्चे सरलता से इन चरित्रों को समझ सकें गे साथ ही ईश्वर की वास्तविकता को भी हृदयासात कर पाएंगे, तब जीवन जीने का नजरिया बदल जाएगा--- “अनल जैसे हों काष्ठ में प्रभु तेरे हृदय में’’। यह एक अखंड धार्मि कता की भावना है जो बच्चों में नींव रूप में पाठ्यक्रम के माध्यम से डालना चाहिए। रचनाकार भी (Real devinity) विश्व व्यापक धर्म में ही विश्वा स रखती हैं। परंतु जिन्हें जो धर्म संस्कार जन्म रूप में मि ला हो उसका सम्मान करते हुए सबको एक समझना चाहिए। जैसे सबों के अलग अलग माता पि ता होने पर भी सभी संतान और अभि भावक का एक समान ही उत्तरदायित्व होता है, उसी प्रकार हम सब अलग अलग प्रभु की माया को स्वीकारते हुए भी एक ही अमर्त्य की ओर प्रेरित होते हैं।
इस अभूतपूर्व अनुवाद और ब्याख्या “अंगिका रामचरित मानस” में सनातन-धर्म का स्तंम्भ,विश्वब्यापी विशाल ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘’रामचरित मानस को आधार स्वरूप प्रस्तुत किया
इस अभूतपूर्व अनुवाद और ब्याख्या “अंगिका रामचरित मानस” में सनातन-धर्म का स्तंम्भ,विश्वब्यापी विशाल ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘’रामचरित मानस को आधार स्वरूप प्रस्तुत किया गया है। यह “अंगिका रामचरित मानस” भारतीय संस्कृति, आचार-विचार, सभ्यता का एक सुंदर धरोहर है । तुलसी “रामचरित मानस” का यह अनुवाद है, भक्ति ज्ञान और कर्म का समन्वय है । साथ ही इसमें रचयिता ने अपना ब्यक्तिगत विचार भी प्रस्तुत किया है— ढोल, गंवार, शूद्र पशु, नारी “ जैसे कुछ विवादित विषय का बिल्कुल सही सटीक अर्थ भी प्रस्तुत किया है । यह मानस जन-मानस को धर्म और सांसारिक-कर्म से जोड़ने की अद्भुत कड़ी है । यह सहज जीवन से लेकर कठिन त्याग का अपूर्व संगम है । इसके अंतर्गत तुलसीदासजी के विचारों को अंगिका भाषा में प्रस्तुत करते हुए, उनके सारे आयामों को यथावत रखते हुए , पाठ की लयबद्धता, पाठ के दौरान के विश्राम, सबको यथावत रखा गया है। रचयिता का अंगिका साहित्य में यह विशाल ग्रंथ तुलसीदास के मानस के आधार पर हू-ब-हू प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास है ,जो निश्चय ही अंगिका साहित्य को भी समृद्ध बनाने में पुर्ण सक्षम होगा । यह हर घर, जन-जन के लिए वंदनीय है,पूजनीय है, ग्राह्य है ।
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