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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palयह संकलन मानवीय सोच से प्रस्फुटित एक सुंदर साहित्य वाटिका है, जिसमें जीवन के बहुरंगी पुष्प मुस्का रहे हैं। कोई पुष्प मानवीय चेतना की खुशबू लिए महक रहा है तो कोई समाज के बहुरंगी आयामों की झलक लिए किसी भाव की लता से लिपटा लहरा रहा है। या कहें यह एक ईश्वर के बनाए इस मानवीय उपवन में नाना सौन्दर्य सुवास सुकुमारिता की झलक दिखने में पूर्ण सक्षम है, तो कहीं कंटीली झाड़ी जीवन की यथार्थता बयान करती है। कहीं सुकुमार गुलाब संग काँटों की चुमन तो कहीं चाँदनी रात की छटा दृष्टिगत होती है। कहीं पर कोयल की मधुर आवाज तो कहीं कंकड़ पत्थर पूर्ण कठोर राह भी यहाँ मिलता है। देशभक्ति, छायावाद,यथार्थवाद,समाजवाद हर् दिशा की झलक यहाँ बखूबी दिखती है। यह “एक मुट्ठी शब्द” साहित्यिक उद्यान में बिखेर दिया गया है, शायद कोई साहित्य प्रेमी पक्षी इसे चुग अपनी क्षुधा तृप्त कर पाए। इसमे एक साथ हिन्दी की विभिन्न क्षेत्रों की कविता, गाँव को उजागर करती अंगिका कविता, और कुछेक कहानियाँ जहां जीवन की प्रत्येक अवस्था को समेट पाना संभव हो पाया है।
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आदरणीया श्रीमती रूपा दास अपनी अद्भुत साहित्यिक छटा विखेर रही हैं। सत्तर वर्ष की उम्र में इन्हंने अचानक से साहित्यिक क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाली है। बड़ा अफसोस होता है साहित्यिकार के रूप में इनकी पहिचान कुछ समय पहले से ही हो पाता। निहार जी का ऐसा कहना,--- “अचानक से कुछ महीनों के अंतराल में ही एक के बाद एक पुस्तकों का हम सबों के समक्ष आना, यह महजजि संयोग नहीं हो सकता' एकदम से राम चरित मानस जैसे ग्रंथों का हू ब हू अनुवाद*...... | कर “अंगिका राम चरित मानस” सबों के समक्ष एक महाकाव्य के रूप में प्रस्तुत कर इन्होंने लोगों को भौंचक कर दिया, फिर कुछ ही महीनों के बाद “नरायणम्”, और अब यह “एक मुट्ठी शब्द”। सारा साहित्य समाज इनकी सोच की इस ऊर्जा से आश्चर्यचकित है। इन्होंने इतने दिनों तक क्यों खुद को हम सबों से छुपा रखा था। हलांकि इस संकलन में प्रकाशित कहानियों की रचना तिथि यहाँ अंकित हैं, इसमें अस्सी बेरासी की लिखी हुई कहानियाँ भी संलग्न हैं, ये कहानियाँ तत्कालीन समाज के आईना के रूप में प्रतिबिंबित हैं, इससे पता चलता है कि इनका साहित्य से जुड़ाव बहुत पुराना है। इनके विषय में अब यह भी पता चलता है कि इन्हींने अपनी दस वर्ष की उम्र में ही सर्वप्रथम स्चना “पगला रमेश” नामक कहानी लिखा था, जिसका शीर्षक और विषय वस्तु तो इन्हें आज भी याद है, जिसे पढ़ कर सुन कर इनकी माँ ने पिता से कहा था, देखिए न इसने ये कहानी लिखी है, इनके पिता ने उस कहानी कोपढ़ कर कहा था-*लिखा तो इसने अच्छा है, परंतु पढ़ने लिखने की अवस्था में ऐसी रुचि उचित नहीं”
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