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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palजन्म – 21 जून, 1969, गोरखपुर, उ.प्र. शिक्षा – एमए (हिन्दी, इतिहास) कहानी संग्रह – ‘उम्र जितना लम्बा प्यार’, ‘बनते बिगड़ते तिलिस्म’, ‘चाकर राखो जी’, ‘अपनी-सी रंग दीन्ही ’ उपन्यास – ‘तपते जेठ में गुलमोहर जैसा’, ‘धर्म हत्या ’, ‘वार्ड नंबर सोलह Read More...
जन्म – 21 जून, 1969, गोरखपुर, उ.प्र.
शिक्षा – एमए (हिन्दी, इतिहास)
कहानी संग्रह – ‘उम्र जितना लम्बा प्यार’, ‘बनते बिगड़ते तिलिस्म’, ‘चाकर राखो जी’, ‘अपनी-सी रंग दीन्ही ’
उपन्यास – ‘तपते जेठ में गुलमोहर जैसा’, ‘धर्म हत्या ’, ‘वार्ड नंबर सोलह इलाहाबाद रोड’
पुरस्कार – ‘मध्यप्रदेश साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार’, ‘कमल टिक्कू पुरस्कार’, ‘दैनिक भास्कर पुरस्कार’
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जीवन में सबकुछ कितना अनिश्चित है। मनुष्य इस जीवन जीने के कारोबार में इस तरह लिप्त होता है मानो कभी कुछ ख़त्म ही नहीं होगा। ‘अनंत में अंत’ के चरित्र भी हमारे आसपास के बहुत से चेहरो
जीवन में सबकुछ कितना अनिश्चित है। मनुष्य इस जीवन जीने के कारोबार में इस तरह लिप्त होता है मानो कभी कुछ ख़त्म ही नहीं होगा। ‘अनंत में अंत’ के चरित्र भी हमारे आसपास के बहुत से चेहरों से मिलते-जुलते हैं। हमारा अपना भी एक चेहरा हम इसमें पहचान सकते हैं ।
यह कहानी जीवन की सूक्ष्मता और विराटता की भी कहानी है। जीवन के किसी एक क्षण में कोई एक नामालूम-सी दिखनेवाली बात भी जीवन को उलट-पुलट करने की क्षमता रखती है। एक नाज़ुक-सा ख़याल बड़े निर्णय करवा लेता है। कुछ भौंडी आवश्यकताओं की चाह, झूठी अभिलाषाएं आपका बेशक़ीमती कुछ छुड़वा देती हैं। इस उपन्यास और इसके पात्रों के साथ चलते हुए, उन्हें बूझते हुए आपको कई चेहरे पहचाने-से लगेंगे। उन चेहरों में एक चेहरा अपना भी होगा।
हमारी पृथ्वी ने अपने अब तक के जीवनकाल में जाने कितनी त्रासदियां देखीं। ईश्वर निर्मित और मानव निर्मित। कितनी महामारियां देखीं फिर भी सारे ज़ख्म लिए निर्विकार, निश्चल अपनी धुरी पर अडिग है। पर मनुष्य हर विपदा पर रोता-कलपता अपने गुनाहों से तौबा करता लेकिन स्थितियां सामान्य होते ही अपनी सारी पुरानी धसर-पसर के साथ शुरू हो जाता है।
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