Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
Discover and read thousands of books from independent authors across India
Visit the bookstore"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalHis Holiness Nigrahacharya Shri Bhagavatananda Guru is one of the great personalities existing today. He is a living example of child prodigy and God gifted talent. He is a renowned religious preacher, research scholar, conspiracy theorist, philanthropist and sociopolitical orator. He is famous for having a great command over the Sanatan Vedic Scriptures.He memorized over a thousand verses in Sanskrit at the age of 4 years. Shri Bhagavatananda Guru was born on 20th March, 1997 A.D. at Bokaro Steel City district of Jharkhand. He is the eldest son of famous social activist Acharya Shri Shankar DRead More...
His Holiness Nigrahacharya Shri Bhagavatananda Guru is one of the great personalities existing today. He is a living example of child prodigy and God gifted talent. He is a renowned religious preacher, research scholar, conspiracy theorist, philanthropist and sociopolitical orator. He is famous for having a great command over the Sanatan Vedic Scriptures.He memorized over a thousand verses in Sanskrit at the age of 4 years.
Shri Bhagavatananda Guru was born on 20th March, 1997 A.D. at Bokaro Steel City district of Jharkhand. He is the eldest son of famous social activist Acharya Shri Shankar Das Guru and Gyanmati Devi. He has achieved the glory of being an author of 25 books till the age of 25 years.
Shri Bhagavatananda Guru got his primary education from his parents. At the age of six years, he got a remarkable command over languages like Hindi, English, Sanskrit, Urdu and Gurmukhi Alphabet . He completed the primary classes at D.A.V. Hehal (Ranchi). At the year 2007, he got Senior Diploma From Prayag Sangeet Samiti in Indian Classical Music at the age of 10. In year 2013, he completed his Matriculation at Lady K.C. Roy Memorial Sr. Secondary School, Ranchi from Central Board of Secondary Education, New Delhi. He also completed his Post Matriculation in 2015 at S.G.M. College, Ranchi from Jharkhand Academic Council, Ranchi. In 2018, Shri Bhagavatananda Guru completed his Graduation in Sanskrit from Ranchi University. In 2019, he got a Post Graduate degree in Global Governance along with Mini MBA from IBMI of Berlin, Germany.
Being born in a Shakdweepiya Brahman family, Shri Bhagavatananda Guru got an enriched environment of spirituality. He completed whole Shrimad Bhagavad Gita at the small age of four years. Since then, he is continuously preaching on various religions. Blessed with great intellect, Guruji got warm honour from many Assembly Speakers, Chancellors and Governers of Jharkhand. Shri Bhagavatananda Guru got respected appreciation from many central and state commission officers, committee and education institutions. He also got blessings of Jagadguru Shri Shankaracharya His Holiness Swami Nishchlananda Saraswati of Govardhana Matha, Jagadguru Shri Shankaracharya His Holiness Swami Swaroopananda Saraswati of Dwarika and JyotirMatha, Swami Kapileshwarananda Saraswati of Kashi Sumeru Matha, Tridandi Swami Jagadguru Ramanujacharya Shri Gopalacharya, Dandi Swami Shri Vishuddhananda Saraswati, Dandi Swami Shri Brijeshwarashram, Jagadguru Shri Ramanujacharya Swami Vasudevacharya Vidya Bhaskara, etc for having great command in debates defending Sanatan Dharma.
Having a multitasking personality, he had made his proud presence in many sectors like social-works, politics, music, preaching, writing and many more. He has also written over a century books (under publication) covering many topics like conspiracies, political situations, terrorism, economical crisis, geopolitical agendas, religion and ancient science, etc. His first book was based on Non Hindu mythological lores and named as 'A Brief History Of The Immortals Of Non-Hindu Civilizations'. It was published in 2015 by Notion Press associated with Aryavart Sanatan Vahini 'Dharmraj'. The book was widely praised by many intellectuals and some foreign universities also included it for the Phd research scholars.
His Holiness Shri Bhagavatananda Guru is the founder of Hindu oriented organization Aryavart Sanatan Vahini 'Dharmraj'. He has been working as Director General in the central committee since October, 2012.
Read Less...Achievements
मूरख हृदय न चेत निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा लिखी गयी खण्डन पुस्तक है। तुलसीपीठाधीश्वर रामभद्राचार्य के द्वारा रामायण के उत्तरकाण्ड को प्रक्षिप्त बताए जाने के
मूरख हृदय न चेत निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा लिखी गयी खण्डन पुस्तक है। तुलसीपीठाधीश्वर रामभद्राचार्य के द्वारा रामायण के उत्तरकाण्ड को प्रक्षिप्त बताए जाने के विरोध में पहले निग्रहाचार्य ने "उत्तरकाण्ड प्रसङ्ग एवं संन्यासाधिकार विमर्श" नाम की पुस्तक लिखी थी जिसका उत्तर रामभद्राचार्य ने "सीता निर्वासन और शम्बूक वध नहीं" पुस्तक लिख कर दिया है। उसके प्रतिखण्डन में निग्रहाचार्य ने "मूरख हृदय न चेत" लिखकर रामभद्राचार्य को लिखित शास्त्रार्थ में प्रमाणों के द्वारा पराजित किया और उत्तरकाण्ड को प्रामाणिक और रामायण का वास्तविक अंश सिद्ध किया।
शतक चन्द्रिका देवी दुर्गा के बत्तीस (३२) नामावली के ऊपर निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा लिखी गयी संस्कृत टीका है। इस ग्रन्थ की पीठिका में ग्रन्थलेखन का प्रयोजन स्पष
शतक चन्द्रिका देवी दुर्गा के बत्तीस (३२) नामावली के ऊपर निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा लिखी गयी संस्कृत टीका है। इस ग्रन्थ की पीठिका में ग्रन्थलेखन का प्रयोजन स्पष्ट है तथा आदि एवं अन्त में भगवान् गोरक्षनाथ की अपरिमार्जित शाबर शैली में निग्रहाचार्यकृत संस्तुति सम्मिलित की गयी है। इसके प्रारम्भिक मंगलाचरण में आठ श्लोक, मुख्य चन्द्रिका में एक सौ एक श्लोक तथा अन्तिम मंगलाचरण में पांच श्लोक हैं। इस संस्करण की सम्पादिका उषाराणी संका हैं।
विशुद्धोपागम निग्रहागमों के अन्तर्गत आने वाला एक उपागम है। इसे प्राणविद्या भी कहते हैं। यह नाभिदर्शना देवी और निग्रहाचार्य के मध्य हुए संवाद पर आधारित है। इसमें १८० श्लोक एवं
विशुद्धोपागम निग्रहागमों के अन्तर्गत आने वाला एक उपागम है। इसे प्राणविद्या भी कहते हैं। यह नाभिदर्शना देवी और निग्रहाचार्य के मध्य हुए संवाद पर आधारित है। इसमें १८० श्लोक एवं १० अधिकार हैं। प्रसङ्गाधिकार में ग्रन्थ के अवतरण तथा तत्त्वमीमांसा का वर्णन है। स्थानाधिकार में देहस्थ प्राणों की अङ्गानुसार स्थिति बतायी गयी है। वर्णाधिकार में प्रत्येक प्राण से सम्बन्धित देवता एवं स्वरूप का वर्णन है। धर्माधिकार में प्राणों की क्रियाएं बतायी गयी हैं। यज्ञाधिकार में प्राणयज्ञ की विधि का सङ्क्षेपण है। आयामाधिकार में प्राणायाम की विधि और प्रभेद वर्णित हैं। प्रकोपाधिकार में प्राणों का प्रकोप से होने वाले रोगों का वर्णन है। चक्राधिकार में प्राणशक्ति एवं चक्रों के माध्यम से प्राप्त होने वाली सिद्धि तथा भूतशोधन का वर्णन है। प्राणाधिकार में ब्रह्माण्डस्थित सप्तविध प्राण, अग्नि एवं समिधा के विषय में बताया गया है। मोक्षाधिकार में प्राण का माहात्म्य एवं प्राणविद्या के लुप्त होने का कारण प्रकाशित किया गया है।
महर्षि अगस्त्य के द्वारा कहे गये शक्तिसूत्र नामक ग्रन्थ में 305 सूत्र हैं। शक्तितत्त्व को निग्रहकर्म में प्रधान माना जाता है तथा शक्ति को निग्रहकारिणी कहते हैं। निग्रह का अर्थ
महर्षि अगस्त्य के द्वारा कहे गये शक्तिसूत्र नामक ग्रन्थ में 305 सूत्र हैं। शक्तितत्त्व को निग्रहकर्म में प्रधान माना जाता है तथा शक्ति को निग्रहकारिणी कहते हैं। निग्रह का अर्थ नियन्त्रण करना होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ निग्रहागमों के द्वारा समर्थित सर्वेश्वरी विद्या आदि से युक्त तथा शक्तिसूत्रों पर निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरुजी के द्वारा लिखे गये सृष्टि भाष्य एवं हेमलता हिन्दी भाषानुवाद के साथ है।
वेद स्तुति श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध में वर्णित है। इसे श्रुति गीता भी कहते हैं। इसमें वेदों के द्वारा भगवान् विष्णु के तात्त्विक स्वरूप का वर्णन किया गया है। प्रस्
वेद स्तुति श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध में वर्णित है। इसे श्रुति गीता भी कहते हैं। इसमें वेदों के द्वारा भगवान् विष्णु के तात्त्विक स्वरूप का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत संस्करण निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा वेदस्तुति पर लिखी गयी सर्वोत्तमा टीका तथा श्रीश्रीधरस्वामी की नारसिंही टीका के हिन्दी अनुवाद के साथ है।
गोपिका गीत श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध के ३१वें अध्याय से लिया गया है। इसमें गोपियों के द्वारा श्रीकृष्ण के प्रति की गयी विरह प्रार्थना का वर्णन है। प्रस्तुत संस्करण
गोपिका गीत श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध के ३१वें अध्याय से लिया गया है। इसमें गोपियों के द्वारा श्रीकृष्ण के प्रति की गयी विरह प्रार्थना का वर्णन है। प्रस्तुत संस्करण निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा गोपिका गीत पर लिखी गयी विद्योत्तमा टीका के हिन्दी अनुवाद के साथ है।
अमृत वचन निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु जी के द्वारा कहे एवं लिखे गए लेखों का संग्रह है। इसमें सैकड़ों ग्रन्थों से प्रमाण देकर सनातन धर्म से सम्बन्धित विषयों को प्रकाशित करके
अमृत वचन निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु जी के द्वारा कहे एवं लिखे गए लेखों का संग्रह है। इसमें सैकड़ों ग्रन्थों से प्रमाण देकर सनातन धर्म से सम्बन्धित विषयों को प्रकाशित करके समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर किया गया है।
कालजिह्वाप्रशस्ति (गृहपतिसूत्रम्) निग्रहाचार्य एवं गृहपति के मध्य हुए एक संवाद का संग्रह है, जब उन्होंने धर्म के विषय में एक दिव्य स्वप्न देखा था। यह ग्रन्थ दो भागों में विभाजि
कालजिह्वाप्रशस्ति (गृहपतिसूत्रम्) निग्रहाचार्य एवं गृहपति के मध्य हुए एक संवाद का संग्रह है, जब उन्होंने धर्म के विषय में एक दिव्य स्वप्न देखा था। यह ग्रन्थ दो भागों में विभाजित है - सूत्रखंड एवं श्लोकखंड। इस संस्करण की संपादिका उषाराणी संका हैं।
वेदों में ब्रह्म का बोध कराने वाले संक्षिप्त किन्तु परिपूर्ण वाक्यों को महावाक्य कहते हैं। शैव मत में चार, वैष्णव मत में पांच, सौर मत में एक, स्कान्द मत में बाईस, गाणपत्य मत में आठ
वेदों में ब्रह्म का बोध कराने वाले संक्षिप्त किन्तु परिपूर्ण वाक्यों को महावाक्य कहते हैं। शैव मत में चार, वैष्णव मत में पांच, सौर मत में एक, स्कान्द मत में बाईस, गाणपत्य मत में आठ, शाक्त मत में एक तथा सबों का समन्वय करने वाले निग्रह मत में सर्वाधिक पच्चीस महावाक्यों की परम्परा है। प्रस्तुत ग्रन्थ लघुकाय होने पर भी सभी महावाक्यों का समन्वय करने वाले श्रीनिग्रहाचार्य के द्वारा विरचित सानुवाद निवृत्तिभाष्य से युक्त होने से अत्यन्त उपयोगी है। निवृत्तिमार्ग की ओर अग्रसर मुमुक्षुओं के लिए यह उत्तम पाथेय है। सभी सम्प्रदायों के निमित्त इसमें सौदार्य सर्वाचार्यप्रशस्ति एवं न्यासविधान का भी समावेश आचार्यपाद ने किया है। श्रीनिग्रहाचार्य को स्वप्न में सूर्यदेव ने सौर महावाक्य का उपदेश करके भाष्यप्रेरणा प्रदान की थी। महावाक्यों का उपदेश, श्रवण अथवा उनपर लेखन करने का अधिकार सबों को नहीं होता है अतएव अपने वर्णाश्रमाचार के अनुरूप समीक्षा करते हुए ही इनका अनुशीलन करना श्रेयस्कर होगा, ऐसी पाठकों से प्रार्थना तथा अपेक्षा है।
शिष्य पाथेय एक लघु पुस्तिका है जिसमें सरल भाषा में निग्रह सम्प्रदाय के परिचय तथा नियमावली के विषय में बताया गया है | इस पुस्तिका में निग्रह सम्प्रदाय तथा निग्रहाचार्य से दीक्षि
शिष्य पाथेय एक लघु पुस्तिका है जिसमें सरल भाषा में निग्रह सम्प्रदाय के परिचय तथा नियमावली के विषय में बताया गया है | इस पुस्तिका में निग्रह सम्प्रदाय तथा निग्रहाचार्य से दीक्षित होने की विधि एवं शिष्यों के आचरण का सामान्य निर्देश किया गया है | यह पुस्तिका निग्रह सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिये प्राथमिक मार्गदर्शिका का कार्य करेगी |
धुरन्धर संहिता निग्रह सम्प्रदाय का एक प्रमुख ग्रन्थ है जिसके रचयिता एवं उपदेष्टा निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु हैं | इसमें एक हज़ार से अधिक श्लोक एवं बीस पटल (अध्याय) हैं | यह ग
धुरन्धर संहिता निग्रह सम्प्रदाय का एक प्रमुख ग्रन्थ है जिसके रचयिता एवं उपदेष्टा निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु हैं | इसमें एक हज़ार से अधिक श्लोक एवं बीस पटल (अध्याय) हैं | यह ग्रन्थ ब्रह्म, जीव, माया, सदाचार, वर्णमातृका एवं अन्य विषयों के रहस्यों को परिभाषित करता है | इसमें सगुण ब्रह्म, निर्गुण ब्रह्म तथा शब्द ब्रह्म का विशेष उल्लेख किया गया है तथा इस संस्करण के सम्पादक ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य हैं |
पुरुषसूक्त सनातन धर्म के वैदिक साहित्य का एक प्रधान सूक्त है | इस पुस्तक में शुक्ल यजुर्वेद के पुरुषसूक्त का पुरुषोत्तम भाष्य सम्मिलित किया गया है जिसके रचयिता निग्रहाचार्य श
पुरुषसूक्त सनातन धर्म के वैदिक साहित्य का एक प्रधान सूक्त है | इस पुस्तक में शुक्ल यजुर्वेद के पुरुषसूक्त का पुरुषोत्तम भाष्य सम्मिलित किया गया है जिसके रचयिता निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु हैं | इस भाष्य में प्रचलित अर्थ के साथ वर्णोद्धार का तान्त्रिक अर्थ एवं पौराणिक अंश का उल्लेख भी हिन्दी अनुवाद के साथ किया गया है तथा इस संस्करण के सम्पादक आचार्य अरुण कुमार पाण्डेय हैं |
जीवन दर्शन नाम की यह पुस्तक श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा विभिन्न समय एवं स्थलों पर कहे गए धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक परिप्रेक्ष्यों से युक्
जीवन दर्शन नाम की यह पुस्तक श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा विभिन्न समय एवं स्थलों पर कहे गए धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक परिप्रेक्ष्यों से युक्त वचनों का संग्रह है | इस संस्करण में सौ उक्तियों को हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध कराया गया है |
परमाक्षरसूत्र निग्रह सम्प्रदाय का एक प्रमुख ग्रन्थ है जिसके रचयिता निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु हैं | इसमें कामाख्या देवी की कृपा के द्वारा प्राप्त दस परमाक्षर सूत्रों क
परमाक्षरसूत्र निग्रह सम्प्रदाय का एक प्रमुख ग्रन्थ है जिसके रचयिता निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु हैं | इसमें कामाख्या देवी की कृपा के द्वारा प्राप्त दस परमाक्षर सूत्रों के ऊपर ज्ञानवतीटीका - सूत्रविस्तारभाष्य, हिंदी अनुवाद के साथ सम्मिलित किया गया है | यह ग्रन्थ ब्रह्म और जीव के रहस्यों को ५५ दृष्टिकोणों से परिभाषित करता है | इस संस्करण के सम्पादक आचार्य अरुण कुमार पाण्डेय हैं |
दिव्यास्त्र विमर्शिनी निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा रचित एक संकलन ग्रन्थ है जिसमें प्राचीनकाल के अधिकांश दिव्यास्त्रों के मन्त्र, विधान और प्रयोग सम्मिलित किय
दिव्यास्त्र विमर्शिनी निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा रचित एक संकलन ग्रन्थ है जिसमें प्राचीनकाल के अधिकांश दिव्यास्त्रों के मन्त्र, विधान और प्रयोग सम्मिलित किये गये हैं | विलुप्तप्राय निग्रह सम्प्रदाय के अन्तर्गत जो मन्त्र और विधान यत्र तत्र नष्ट हो रहे थे उनका अनेक देवता तथा ऋषियों के मत के अनुसार वर्णन करने का प्रयास इस ग्रन्थ में किया गया है |
महावतार स्तुति ४६ श्लोकों में निबद्ध भगवान् विष्णु एवं उनके अवतारों की लीला तथा प्रशंसा में लिखी गयी एक लघु रचना है | त्रिपुराम्बाशाम्भवीमहाप्रपत्ति देवी ललिता त्रिपुरसुन्द
महावतार स्तुति ४६ श्लोकों में निबद्ध भगवान् विष्णु एवं उनके अवतारों की लीला तथा प्रशंसा में लिखी गयी एक लघु रचना है | त्रिपुराम्बाशाम्भवीमहाप्रपत्ति देवी ललिता त्रिपुरसुन्दरी की स्तुति में लिखी गयी एक पचास श्लोकों की लघु रचना है जिसके रचयिता निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु हैं |
Bipolar Disorder is a widely spreading mental instability between the society. This book is written by Shri Bhagavatananda Guru based on his personal experiences and studies while dealing with the problem. This book covers almost every question and topic related to bipolar disorder in a simplified manner which can result into a valuable guide for the people who are unaware of it. This book is very useful to cope with the medications and lifestyle to make peopl
Bipolar Disorder is a widely spreading mental instability between the society. This book is written by Shri Bhagavatananda Guru based on his personal experiences and studies while dealing with the problem. This book covers almost every question and topic related to bipolar disorder in a simplified manner which can result into a valuable guide for the people who are unaware of it. This book is very useful to cope with the medications and lifestyle to make people healthy and socially fit fighting bipolar disorder. People facing other problems like common depression or substance abuse can also be benefited by the explanations included in this book.
उत्तरकाण्ड प्रसङ्ग एवं संन्यासाधिकार विमर्श नाम की यह पुस्तक चित्रकूट के तुलसी पीठाधीश्वर श्री रामभद्राचार्य जी के अशास्त्रीय वक्तव्य एवं धारणाओं का बचाव करने वाले उनके पक्
उत्तरकाण्ड प्रसङ्ग एवं संन्यासाधिकार विमर्श नाम की यह पुस्तक चित्रकूट के तुलसी पीठाधीश्वर श्री रामभद्राचार्य जी के अशास्त्रीय वक्तव्य एवं धारणाओं का बचाव करने वाले उनके पक्षधरों के विरुद्ध निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा लिखी गयी है | इस पुस्तक में उत्तरकाण्ड एवं उसके प्रसंगों को प्रामाणिक सिद्ध करते हुए श्रीभागवतानंद गुरु ने श्री रामभद्राचार्य जी के संन्यासी या जगद्गुरु होने के अधिकार एवं औचित्य पर प्रश्नचिह्न खड़े किये हैं | इस पुस्तक में सनातन धर्म के ग्रंथों में प्रक्षिप्त अंशों की संभावना व्यक्त करने वाले मत का भी खंडन किया गया है जिसका उत्तर रामभद्राचार्य ने "सीता निर्वासन और शम्बूक वध नहीं" पुस्तक लिख कर दिया है। उसके प्रतिखण्डन में निग्रहाचार्य ने "मूरख हृदय न चेत" लिखकर रामभद्राचार्य को लिखित शास्त्रार्थ में प्रमाणों के द्वारा पराजित किया और उत्तरकाण्ड को प्रामाणिक और रामायण का वास्तविक अंश सिद्ध किया।
नक्षत्र माहेश्वरी नक्षत्रों के परिचय, शुभाशुभ विवेचन एवं व्रत सम्बन्धी शास्त्रीय ज्ञान का अनुपम प्रकरण ग्रन्थ है | यह सूत्रात्मक व्यवहारखण्ड एवं श्लोकात्मक प्रयोगखण्ड में व
नक्षत्र माहेश्वरी नक्षत्रों के परिचय, शुभाशुभ विवेचन एवं व्रत सम्बन्धी शास्त्रीय ज्ञान का अनुपम प्रकरण ग्रन्थ है | यह सूत्रात्मक व्यवहारखण्ड एवं श्लोकात्मक प्रयोगखण्ड में विभक्त है | इसके रचयिता श्री निग्रहाचार्य हैं तथा प्रस्तुत संस्करण की हिन्दी व्याख्या पं० ब्रजेश पाठक ज्यौतिषाचार्य ने की है |
Business Management is that branch of education which provides knowledge and training pertaining to planning and skills. Management is the act of allocating resources to accomplish desired goals and objectives efficiently and effectively; it comprises planning, organizing, staffing, leading or directing, and controlling an organization (a group of one or more people or entities) or effort for the purpose of accomplishing a goal. It includes all aspects of over
Business Management is that branch of education which provides knowledge and training pertaining to planning and skills. Management is the act of allocating resources to accomplish desired goals and objectives efficiently and effectively; it comprises planning, organizing, staffing, leading or directing, and controlling an organization (a group of one or more people or entities) or effort for the purpose of accomplishing a goal. It includes all aspects of overseeing and supervising business operations.
This is a training regimen course focused on the fundamentals of business management and governance. These are typically non-credit bearing programs that require less than 100 hours of total learning. The book will teach you to think differently about the key management and financial aspects of running an organization as well as what consumers want and expect. For example, as doctor, it will give you the confidence to take up management and leadership roles and compliment interests in health policy and commissioning.
श्रीसूक्त ऋग्वेद के खिलभाग के अन्तर्गत श्रीदेवी (लक्ष्मी) की एक महत्वपूर्ण स्तुति है | प्रस्तुत पुस्तक में मूल संस्कृत पाठ तथा उसपर श्रीनिग्रहाचार्य के द्वारा विरचित शङ्करभाष
श्रीसूक्त ऋग्वेद के खिलभाग के अन्तर्गत श्रीदेवी (लक्ष्मी) की एक महत्वपूर्ण स्तुति है | प्रस्तुत पुस्तक में मूल संस्कृत पाठ तथा उसपर श्रीनिग्रहाचार्य के द्वारा विरचित शङ्करभाष्य सम्मिलित किये गये हैं | पाठकों की सुविधा के लिये श्रीप्रसाद-भाषानुवाद भी हिन्दी में दिया गया है | इस भाष्य की विशेषता यह है कि इसमें बहुत से दुर्लभ अर्थ एवं भावों का समावेश है | इस संस्करण के संपादक आचार्य अरुण कुमार पाण्डेय हैं |
This book contains a complete analysis of the legendary myths of civilizations like Roman, Greek, Celtic, Arabian, British, Japanese and Chinese. From the stories of the Trojan war and adventures of Hercules, Perseus and Theseus to the stories of the White Snake and Battle of Red Cliffs, this book is about the mesmerizing past of our ancestors.
This book contains a complete analysis of the legendary myths of civilizations like Roman, Greek, Celtic, Arabian, British, Japanese and Chinese. From the stories of the Trojan war and adventures of Hercules, Perseus and Theseus to the stories of the White Snake and Battle of Red Cliffs, this book is about the mesmerizing past of our ancestors.
Are you sure you want to close this?
You might lose all unsaved changes.
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.