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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआदिवासियों की व्यथा और वन प्रबंध
यह पुस्तक आदिवासियों की व्यथा को रेखांकित करती है| आदिवासियों की आबादी मध्य प्रदेश में २१% , छतीसगढ़ में ३०% से अधिक है इसके वावजूद इनकी सबसे बड़ी समस्या उनके बहुमूल्य कीमती वृक्षों को काटने और बेंचने की अनुमति न मिलना स्वतंत्रता के ७३ वर्ष बीत जाने के बाद भी इनके साथ अन्याय है| यदि इन्हें उक्त सुबिधा मिल जाए तो ये सुखी और संपन्न हो जाये|
आदिवासियों का सम्पूर्ण जीवन वनों पर निर्भर है , इनकी रोजी रोटी वन उपज और वन के कामो से चलती है| वनों का ह्रास होने से वनोपज में कमी और वानिकी कार्यों के कम होने से शहरों की ओर पलायन को मजबूर हैं| इनकी आय बढाने के लिए उनकी जमीन पर उगे पेड़ो का मूल्य दिलाना और कृषि वानिकी को प्रोत्साहित करना होगा|
आदिवासियों की तरह वनवासियों और वनों से लगे ग्रामीणों की दशा भी कमोवेश आदिवासियों जैसी ही है| उनकी आय बढाने के लिए कृषि वानिकी को बढ़ावा देना होगा . बांस वनों का ८० के दसक के बाद से बहुत विनाश हुआ है जिसके प्रबंधन को मज़बूत करने के उपाय सुझाये गए है| वनों के प्रबंधन के सन्दर्भ में प्रकाश डाला जाकर सुधार के बारे में चर्चा की गई है|
इस पुस्तक के माध्यम से जहा एक ओर आदिवासियों और वनवासियों की समस्या को प्रस्तुत किया गया है वहीं इसको दूर करने के उपाय भी सुझाये गए हैं| इससे राज्य सरकारों को योजना बनाने में मदद मिलेगी | आशा की जाती है कि आदिवासियों के जीवन में नई खुशियाँ जरूर आएँगी|
रामगोपाल सोनी
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डॉक्टर रामगोपाल सोनी भा.वन.सेवा. मध्य प्रदेश कैडर के १९८२ बैच के अधिकारी है| इन्होने मध्य प्रदेश में वन विभाग में विभिन्न पदों पर कई वनमंडलों में वनमंडलाधिकारी के रूप में, वन संरक्षक के पदों पर छिन्द्वाडा वन वृत्त में , वन संरक्षक ,पेंच टाइगर रिज़र्व में क्षेत्र संचालक ,मुख्य वन संरक्षक बालाघाट वन वृत्त ,जबलपुर अनुशंधान एवं और विस्तार वन वृत्त में और अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक मध्य प्रदेश ,एवं सदस्य सचिव मध्य प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड के पद से वर्ष २०१४ में सेवा निवृत्त हुए|
उन्हें जंगलबुक का क्षेत्र और मोगली की सत्य कहानी पेंच टाइगर रिज़र्व क्षेत्र की होने का खोजने का श्रेय जाता है| इन्होने वन्य प्राणी प्रबंधन पर एक पुस्तक तथा जैव विविधता पर तीन पुस्तकें और वन क्षेत्रमिति पर एक पुस्तक लिखी है| इन्होने लाइफ साइंस में डॉक्टरेट किया है| इन्होने अपनी विभिन्न क्षेत्रीय पद्स्थियों के दौरान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थितियों को बारीकी से समझा है | आदिवासियों की जीवन शैली पूर्णतः वनों और वन प्रबंधन पर निर्भर है ,अपनी विभिन्न क्षेत्रीय पद्स्थियों में आदिवासियों की व्यथा का अनुभव किया था, इसीलिए आदिवासियों की व्यथा और वन प्रबंध पर पुस्तक लिखा है,और आदिवासियों की व्यथा दूर करने हेतु अनेक योजनाओं का सुझाव दिया है|
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