यह पुस्तक भगवान शिव की स्तुति में ऋषि विश्वानर द्वारा गाए गए एक अष्टक पर एक व्यापक टिप्पणी है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों और इतिहास से विभिन्न संदर्भ उद्धृत किए गए हैं जिससे पाठकों को यह समझने में मदद मिल सके कि कैसे भगवान शिव शास्त्रों के अंतिम सार हैं और अकेले भगवान शिव को आत्मसमर्पण करने से मुक्ति मिलती है।
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