पुस्तक का अध्ययन दर्शाता है कि पुस्तक का आधार केवल मिथकीय वर्णनों का संकलन नहीं है; यह हिंदू, बौद्ध तथा अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक परंपराओं के बीच सेतु निर्माण का प्रयास है। पुस्तक यह स्वीकार करती है कि समय-समय पर विभिन्न संत, मनीषी, आचार्य और भविष्यद्रष्टा मानव समाज को दिशा देने के लिए प्रकट हुए-और इसी परिप्रेक्ष्य में स्वामी विवेकानन्द का विचार कि “हिंदू–बौद्ध एकता भविष्य का मार्ग है” विशेष महत्त्व अर्जित करता है। यह कथन न केवल उद्धृत है, बल्कि पुस्तक की व्यापक दार्शनिक पृष्ठभूमि भी बनाता है ।
ग्रंथ के भीतर वर्णित सामग्रियाँ अनेक स्तरों पर चलती हैं-
• शास्त्रीय भविष्यवाणियाँ,
• कल्कि अवतार से जुड़े पुराण–वचनों का विवेचन,
• प्राचीन राजाओं, ऋषियों और दिव्य सहायकों का वर्णन,
• तथा अधर्म–विनाश और धर्म–स्थापन के कालचक्र का दार्शनिक विश्लेषण।
यह ग्रंथ केवल धार्मिक कल्पनाओं को दोहराता नहीं, बल्कि यह प्रश्न भी उठाता है कि-
क्या भविष्यवाणियाँ केवल प्रतीक हैं?
क्या अवतार कोई अलौकिक घटना है या सामाजिक चेतना का चरमोत्कर्ष?
क्या मानव स्वयं अपने भविष्य का निर्माता है?
इस भूमिका का उद्देश्य पाठक को यह समझाना है कि यह पुस्तक केवल धार्मिक जिज्ञासा के लिए नहीं, बल्कि सत्य, इतिहास और मानव विकास की खोज के लिए लिखी गई है। यह उन सभी के लिए है जो यह जानना चाहते हैं कि-
भविष्यवाणियाँ क्या कहती हैं?
कल्कि अवतार का अर्थ क्या है?
अधर्म का अंत और धर्म का पुनर्जागरण कैसे होगा?
और अंततः-मानवता किस दिशा में अग्रसर है?
यह पुस्तक इन सभी प्रश्नों का उत्तर प्रदान करती है-गंभीर अध्ययन, संदर्भ, तर्क और शास्त्रीय आधारों पर।
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