द्रौपदी के कृष्ण
मित्रता, एक ऐसा रिश्ता जो हमें अपने माता पिता से नही मिलता अपितु हम खुद चुनते हैं जहाँ सुख दुख तेरे मेरे नही रह जाते, हमारे बन जाते हैं और एक दूसरे की खातिर हर मुश्किल में हम अपने मित्र से सदैव आगे रहना चाहते हैं। एक किस्सा था जब कृष्ण ने शिशुपाल को मारा तो उनकी उँगली से बहता रक्त देख कर द्रौपदी ने उस पर अपनी साड़ी को फाड़कर चीर बांधी जिसका कर्ज चुकाने के लिए कृष्ण ने चीरहरण मे द्रौपदी की लाज बचाई और तभी से उन्हें भाई बहन की संज्ञा दी जाने लगी, लेकिन उनका रिश्ता इससे कही अधिक था, जो ना प्रेम का था ना भाई बहन का, उनके संबंध की मर्यादा, आपसी समझ और परस्परिक प्रेम को व्यक्त करना इस युग में किसी भी कवि के सामर्थ्य में है ही नही, यदि होता तो भक्तिकाल के कवियों की कविताओं में राधा कृष्ण नहीं, अपितु द्रौपदी कृष्ण का वर्णन होता, लेकिन किसी भी संबंध को समझना हमारे मानसिक कौशल का गुण है अब आप उसे सखा, सखी का समझिये या भाई बहन का, शर्त यही है उसमें समर्पण, त्याग, मर्यादा और प्रेम परिपूर्णता निहित हो।
अपने इसी तथ्य को सारगर्भित करने के लिए हमने प्रयास किया है एक ऐसी संकलन रचना का, जिसमें आपको श्री कृष्ण और द्रौपदी के मध्य का पवित्र बंधन का आभास होगा, आशा है आप इसे पढ़ने से पहले अपना मन शुद्ध रखेंगे और हमारी भावनाओं को समझेंगे।।