मरीचिका तो अंतत: मरीचिका ही होती है, चाहे किसी भी वस्तु के प्रति हो। फिर इसका कोई अंत भी तो नहीं होता। दौड़ता दौड़ता इंसान थक हार कर बैठ जाता है। राधिका की भी कुछ ऎसी ही अवस्था थी। उस की भी हर आस समय के साथ साथ टूटती चली जा रही थी।
"माधव ! मेरी बात ध्यान से सुनो। मैं आपको अपने जीवन की एक सब से बड़ी सच्चाई बताने जा रही हूँ।” क्षणभर चुप रहने के पश्चात राधिका ने कहना आरम्भ किया, "यह सच है माधव कि मैं आपको &