In this book..., "क्या खोया? क्या पाया?" A HUMAN JOURNEY…,
“हम सभी, कभी न कभी, ये सोचने पर विवश हो जाते है कि, जीवन क्या है? और सम्पूर्ण जीवन हमने अपने लिए या औरों के लिए, जो कुछ भी किया। वह सभी कुछ, सही था? या गलत? हो सकता है की कुछ लोगों को इस सवाल का जवाब मिल जाता हो। और कुछ को नहीं! जीवन, इसी, सुख-दुख, सवाल-जवाब में खत्म हो जाता है। और पीछे रह जाता है, एक सवाल! मैंने जीवन भर जो किया। वो करने के उपरांत। "क्या खोया? क्या पाया?" ये कहानी भी एक ऐसे ही इंसान की है। जो जीवन के इस सबसे बड़े प्रश्न का उत्तर तलाश रहा था। क्या उसे उसके जीवन के इस सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर मिला? या नहीं?” "क्या खोया? क्या पाया?"