यह काव्य-संग्रह कवि देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’ की गहन संवेदनाओं और जीवन-दर्शन का अनूठा प्रतिफल है। इसमें प्रेम की मधुरता और विरह की तीव्र पीड़ा है, स्मृतियों की नमी और तन्हाई का सन्नाटा है, साथ ही समाज और राष्ट्र के प्रति जागरूक दृष्टि भी विद्यमान है। कवि ने अपनी कविताओं में जीवन की विविध अवस्थाओं—हर्ष, विषाद, संकल्प, संघर्ष और आत्ममंथन—को अत्यंत सहजता और प्रभावशाली भाषा में अभिव्यक्त किया है।
‘विनीत’ की कविताएँ केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि मानवीय अस्तित्व की जटिलताओं की पड़ताल भी हैं। “मैं नारी हूँ” जैसी कविताएँ नारी के त्याग और शक्ति का गान करती हैं, तो “वतन के वास्ते” जैसी रचनाएँ कवि की राष्ट्र-निष्ठा और सामाजिक सरोकार को प्रकट करती हैं। वहीं “मैं वही हूँ” जैसी रचना आत्म-संवाद और अस्तित्व की गहराइयों में उतरने का प्रयास है, जो पाठक को अपने भीतर झाँकने के लिए प्रेरित करती है।
इस संग्रह की भाषा सरल है, किंतु भाव और प्रतीक गहन हैं। दीपक, तारा, ओस, नाव, नदी, मंदिर की दीवार—ये सब साधारण प्रतीक कवि के हाथों में असाधारण अर्थ ग्रहण करते हैं। कविताओं में प्रयुक्त लय और पुनरुक्तियाँ (रीफ्रेन) भावों की गूँज को और तीव्र बना देती हैं।
समग्र रूप से यह संग्रह एक ऐसी काव्य-यात्रा है जिसमें पाठक को आत्मानुभूति, प्रेम और करुणा के साथ-साथ जीवन की गंभीर दार्शनिक अनुभूतियाँ भी मिलती हैं। यह पुस्तक उन सभी पाठकों के लिए है जो कविता में केवल शब्द नहीं, बल्कि जीवन की धड़कन और आत्मा की सच्चाई तलाशते हैं।
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