इंसान जब किसी मुसीबत में होता है तब वह चाहता है कि उसको मुसीबत से छुटकारा मिले और सुकून प्राप्त हो लेकिन जब यह असंभव सा प्रतीत होता है तब वह अपने मालिक से वादा या प्रतिज्ञा करता है कि मुझे इस मुसीबत से छुटकारा दो मैं यह काम करूंगा या वह खुद से दृढ़ संकल्प करता है कि मैं यह कार्य करूंगा।
धार्मिक मनुष्य के लिए यह प्रतिज्ञा ईश्वर से होती है लेकिन नास्तिक मनुष्य के लिए यह प्रतिज्ञा खुद से होती है।
इसके परिणाम क्या है? यह इसका विचार कैसे आता है, वह पवित्र कुरान में इसका क्या भूमिका है इसको थोड़ा प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है।
कृपया इसे पढ़ें और लाभ उठाएं , यदि आपके पास कोई अधिक जानकारी हो तो अवगत करायें ।
धन्यवाद
आपका- अब्दुल वहीद बाराबंकी उत्तर प्रदेश भारत (इंडि
या)
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