विधुर रामप्रसाद जी के दोनों बेटे विदेश में नौकरी करते हैं। बेटों की तरफ से वे उपेक्षित हैं व एकाकी जीवन जीने पर मजबूर हैं। उनके पतझड़ सी जिंदगी तब बसंत बन जाती है जब उनके जीवन मे शिउली का आगमन होता है। कलकत्ता की शिउली अविवाहिता है जो मॉडर्न ख्यालों की है। उसके माता - पिता का देहांत हो चुका है और उसे विरासत में ढेर सारी संपत्ति मिली है। उसे सर्विक्स कैंसर है।
वैष्णो देवी की यात्रा के दौरान दोनों की मुलाकात एक बस में होती है। यात्रा के दौरान बातूनी और मुखर शिउली की नोंक झोंक देसी और शांत स्वभाव वाले प्रसाद जी से होती है। जिसके बाद प्रसाद जी का कपड़ा बस में ही छूट जाता है। वह कपड़ा फिर से दोनों को मिलाता है।
शिउली की एक इच्छा है जिसे वह प्रसाद जी के माध्यम से पूरा करना चाहती है।
90 के दशक की प्रेम कहानी में क्या शिउली की इच्छा पूरी हो पाती है?
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