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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआज से 50-60 वर्ष पूर्व, जब भारत आज़ाद ही हुआ था, झाँसी जैसे छोटे से शहर में एक कवि, पत्रकार अपनी रचनाओं को सृजित कर रहा था। परन्तु वो इन रचनाओं को सार्वजनिक करनें में संकोच कर रहा था। इन रचनाओं में कवि का तंत्र के प्रति आक्रोश, बेरोजगारी की जद्दोजहद, दोस्तों के प्रति लगाव, और श्रृंगार रस का प्रयोग साफ़-साफ़ झलकता है। कवि के आशावादी नज़रिए का एक उदाहरण यहाँ मिलता है -
मैं आशावादी मानव हूँ, मैं हार निराशा क्या जानू
मैं अंगारों में रहता हूँ, मय की परिभाषा क्या जानू
मैं संघर्षों में रत रह कर, अपना सौंदर्य बढ़ाता हूँ
मैं नीलकंठ हूँ, गरल समुन्दर का पीकर मुस्कुराता हूँ
स्व० रमेश चौबे की कविताओं में भाषा की पकड़ के साथ साथ साफगोई से अपनी बात कहने की सामर्थ भी साफ़ साफ़ झलकती है। ये कविता संग्रह साहित्य प्रेमियों के लिए एक सहेजने लायक पुस्तक है।
स्व० रमेश चौबे
स्व रमेश चौबे, बुंदेलखंड झांसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार रहे है। उनका जन्म 15 जनवरी 1930 को झांसी में हुआ। वामपंथी विचारधारा में पले बढ़े रमेश चौबे ने कविताओं के माध्यम से अपनी बातें लोगों के सामने रखी। पेशे से पत्रकार रमेश चौबे ने अपने कैरियर में ब्लिट्ज, अमृत बाज़ार पत्रिका, नव भारत टाइम्स, हिंदुस्तान, आज, आदि समाचार पत्रों में अपनी सेवाएं दी।
मीडिया से जुड़े होने के बाबजूद उन्होंने कभी भी कोई काव्य संकलन प्रकाशित नहीं करवाया। उनकी मृत्यु के पश्चात, उनके पास से लगभग 500 हस्तलिखित कविताएं प्राप्त हुई। ये कविताएं न सिर्फ उस समय के माहौल को चित्रांकित करती है बल्कि रमेश चौबे के मन में चल रही व्यथाओं और सामाजिक चिंतनों को संकलित करती है।
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