रोज़मर्रा की ज़िंदगी के कुछ लम्हे, काँधे से जाने कब काग़ज़ पर फुदक आए और काग़ज़ों के इश्क़ में डूब कर स्याही बन कर फैल गए।
मैंने बस उनपर उदास नज़र डाली और वो कुछ शब्द, कुछ पूरी कुछ अधूरी पंक्तियाँ बन मेरे ज़हन से लिपट गए।
मोहब्बते ज़िंदगी का ये अफ़साना अब आपके हवाले।