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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palहास्यप्रद तथा घनघोर विस्मय पर, आधारित इस उपन्यास के, ज्यादातर खण्ड, दो बेहूदे नवयुवकों की, जीवन शैली को दर्शाते हुए, उन घटनाओं का जिक्र करती है, जब वे दोनों ही बेरोजगार थे, तथा कथानक के, ज्यादातर हिस्सों में, केवल उनके द्वारा, रोजगार को खोजने, व् उनके साथ हुई, कुछ अनाप-सनाप हरकतों को, वर्णित किया है।
घटनाक्रम, निरन्तर उन्हीं दो, पढ़े लिखे बेहूदों के, आसपास ज्यादातर भटकता है। जो निरन्तर नौकरी, पेशा ढूंढने में, लगे हुए हैं, और कई नाकाम कोशिशों के बावजूद, वे काफी समय तक, नाकाम ही घूमते हैं, उपन्यास की पृष्ठभूमि, उस समयकाल को, दिखाने की कोशिश करती है, जब पूरा विश्व मंदी के दौर से, गुजर रहा था, और वे दो, खास हुनर मन्द बेचारे, बेरोजगार थे।
उपन्यास के आखिरी पड़ाव में, वे सफल तो होते हैं, लेकिन जिन दो चरित्रों का, उपन्यास में जिक्र किया गया है, वे वास्तविकता में, होते ही नहीं हैं, वे तो उपन्यास के, किसी तीसरे चरित्र द्वारा, उसके साथ हुई, किसी असाधारण घटना से, उत्पन्न हुई, एक तरह का विकार, या काल्पनिक चरित्र हैं, जिसे उसने वास्तविकता का, एक रूप दे दिया था।
..हालांकि, कहानी खत्म होने के बाद भी, कई ऐसे तत्थों का, खुलासा नहीं करती है, जो कई तरह के, भ्रम को पैदा करते हैं। परन्तु कहानी को, कुछ इस कदर रूख दिया गया है की, कहानी को बिना पूर्ण किये ही, और निरन्तर सम्भ्रम, व् विभ्रान्ति पैदा करते हुए भी, यह कहानी कहीं से, अपूर्ण नहीं लगती, और पाठक स्वयं ही, कथानक के परिणाम तक पहुंच जाते हैं, यही विशेषता ही, इस साहित्य विधा की, एक मात्र कला निधानता भी है।
राहुल पाण्डेय
काल्पनिक प्रतिभा के गुणी, कथाकारिता व्यक्तित्व के रूप में, जाने, माने उपन्यास रचनाकार राहुल पाण्डेय, पहले ऐसे भारतीय उन्नायक रहे हैं, जिन्होंने नाटकीय एवं उपन्यासकारिता, व् हास्य कथा में, सदोक्कड़ी शैली, ..जो, कथानक खण्ड टुकड़ियों के, समस्त विभिन्न, खण्ड संख्यांक के, परिणाम के रूप में प्रस्तुत, तथा विस्मयता का, खुलासा किये बगैर, परिणाम पाठकीय, उत्घृत करा देने, तथा परिणाम की, परिपक्वता सम्पूर्ण रूप से, दर्शाने वाली इस पहली पुस्तक में, पूर्ण क्षमता है जो उन्हें, सदोक्कड़ी शैली, और विश्मातक हास्य मिश्रण का, प्रथम भारतीय उन्नायक बनाने में।
उपन्यासकारिता की, अपने पहले ही, साल की, इस यात्रा में, इन्होंने, इस पुस्तक के अतरिक्त तीन अन्य उपन्यासों को, और पब्लिश्ड किया है, पहली ‘खिलाड़ी सतोशीनाकामोतोज’, दूसरी ‘लड़ाई बिना हथियार के’ और तीसरी 'काला धन' इन तीनों की, बेजोड़ सफलता के बाद, इनकी चौथी पुस्तक 'दो बेहूद, एक और बड़ी उपलब्धि के रूप में, हमारे प्यारे पाठकों के समक्ष पेश की जा रही है।
लेखक अपनी लेखनी की, इस दुनिया में, इन चारों के, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, धमाल मचाने के बाद, अपनी साहित्य विधा सेवा की इस, अग्रिम चरण में, इन्होनें अगली कृति ‘कलियुग के 1200 दिव्य वर्ष’ जोकि एक त्रय कथा है, उसके दो भागों को, जोकि पहली प्रति 'कालगा पिशाचों के देव’, दूसरी प्रति, 'स्वर्ग एक युद्ध क्षेत्र' को प्रकाशित किया, तथा इस त्रय-कथा की तृतीय व् अंतिम कृति जोकी 'देवों की अमरता का रहश्य' की रचना का कार्य, इनके द्वारा प्रगतिशील है।
..हाल ही में, साहित्यिक इस प्रगतिवादी, लेखक ने, उपन्यासों की झड़ी लगते हुए, एक और पुस्तक 'विध्ध्वंश' का प्रकाशन और किया, तथा इन्होने, अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर, अनेकों शीर्षकों के नाम, का जिक्र किया जिस अभी वे कार्यरत है और जोकी जल्दी ही, जनसमुदाय के समक्ष, पेश की जायेंगी।
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