’’ये वह शब्द नही’’ कथाकार डॉ0 वरदा शुक्ला कि भावप्रवण विचारोंत्तेजक कहानी संघ्रह है। नारी जीवन के दुःसाध्य संघर्ष का विभिन्न पात्रों के माध्यम से चित्रण करने की विद्या से लेखिका सुपरिचित है। पात्रों की वेदना, समग्र नारी-जाति की चिरन्तन वेदना और विशणता को नाना रूपों में ध्वनित करती है।
लेखिका के चिकित्सीय जीवन में घटित-प्रसंगों की पृष्ठभूमि से कथाएं उत्पन्न एवं प्रेरित होती है। सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियाँ तो हैं ही। कथारस की वर्तमान में प्रासंगिकता स्वयं सिद्ध है। जैसे क्या एक नारी के जीवन की डोर, समाज एवं सरकार द्वारा रचित नियमों पर निर्भर है? कितना विरोधाभास है कि इतने भौतिक तकनीक विकास उपरान्त भी नारी एक कठपुतली है?
जिस परिमाण में नारी जीवन पर्यन्त निस्पृ-निस्वार्थ, कर्तव्य-निर्वाह करती है, उस परिमाण में सम्मान और स्वीकृती नही मिल पाती ।
संग्रह का शीर्षक “ये वह शब्द नहीं’ की सार्थकता एवं उद्देश्य क्या है? इसे लेखिका स्पष्ट करती है “एक स्त्री का शरीर वह सारे उत्तर दे देता है, जो स्वर नहीं दे पाते। निःशब्द पीड़ा और वेदना की कहार बहुत तीव्र होती है, वे घाव नहीं दिखते। वह मरी नहीं मुक्त हो गई।”
समाज के अंर्तविरोधों को उद्घाटित करती, एक पठनीय कृति
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