भगिनी - उम्रभर की साथी
माँ तो नहीं, लेकिन माँ सा ही आँचल, माँ जैसी ममता, दुलार, प्रेम, डांट फटकार, सीख जिसके सानिध्य में हम गृहण करते हैं, वो होती है हमारी सहोदरा। जो अपने जन्म से, या जिसके साथ हम अपने जन्म से बंधन में बंध जाते हैं, हर मुश्किल घड़ी में जो हमसे पहले हमारे साथ खड़ी रहे, अपनी हर खुशी जिससे बाँटे बिना अधूरी है, जिसके अंदर हम अपनी माँ की छवि देखते हैं, वही तो होती है हमारी बहन, अब चाहे वो छोटी हो या बड़ी, बहन आखिर बहन ही होती है। कहते हैं, कि माँ के लिए कुछ भी लिख पाना असंभव है, तो फिर एक बहन जो हमारी दोस्त, संगिनी, भार्या होती है उसकी व्याख्या में कुछ भी वर्णन करना मुमकिन ही नहीं। भगिनी - उम्रभर की साथी में हमने सँजोये हैं ऐसे ही कुछ वर्ण कविताओं के रूप में, जिनसे माँ तुल्य बहन की व्याख्या सारगर्भित हो सके, आशा है पाठकों के हृदयतल में अपना स्थान बनाने में ये पुस्तक संपन्नता प्राप्त करेगी।।