अपनी सौतेली माता के अत्याचारों से आहत होकर जिसने मात्र सात वर्ष की अल्पायु में ही आत्महत्या करने का मन बना लिया था। लेकिन विधाता को तो कुछ और ही मंजूर था, उसने उसे आत्महत्या करने से रोक लिया। तब वह उस मात्र पांच वर्ष की आयु में ही चिंतन करने लगा कि इस दुनिया में इतनी विसमता क्यों है, कोई तो बहुत ही सुखी है और कोई बहुत ही कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहा है। किसी के घर खाना इतना बच जाता है कि जानवरों को खिलाना पड़ता है, और किसी को वह खाना भी नसीब नहीं होता है जिसे जानवर छोड़ देते हैं।