हकलापन! सच कहूं तो यह विषय बात करने के काबिल ही नही हैं। हकलापन समाज में एक गंभीर बीमारी बन चुका हैं, जिसमे हमारे पढ़े – लिखे शिक्षित लोगो की महत्वपूर्ण भूमिका हैं।
मैंने अपनी पहली किताब का नाम लड़का वो थोड़ा हकलाता था। इस लिए रख हूं, क्यूं की मैं खुद इस समस्या के साथ जूझ चुका हूं। सच कहूं तो हकलाते हुए लड़के को हर जगह इतनी समस्या होती हैं की शब्दो में बता पाना बड़ा ही मुश्किल हैं। आप कितने भी अच्छे क्यू ना हो आपको वह इज्जत नहीं मिल पाती जो सम्मान आप पाने के हकदार हैं। वह आपका अपना निजी स्थान हो या स्कूल, कोचिंग संस्थान, कॉलेज, दफ्तर या कोई अन्य जगह हों। हकलाते हुए लड़के का हर जगह मजाक उड़ाया जाता हैं। हकलापन का सही कोई इलाज भी नही हैं, डॉक्टरो का मानना हैं, सिर्फ अभ्यास करने से तुतलापन या हकलपन खत्म हो जाएगा लेकिन अभ्यास भी करें तो कितना करें कुछ दिनो तक सुधार रहती हैं और बाद में फिर हकलापन पुराने रूप में आ जाता हैं।
जैसे जैसे मेरी उम्र बढ़ती गई आवाज में सुधार होने लगा था। हां! पूरी तरह से तो ठीक न हो पाया मगर आवाज की लड़खराहट में काफी हद तक सुधार हो रहा था। मुझे अभी जब पुराने दोस्त मिलते हैं तो उनसे बात होती हैं, मुझे यह देख कर बड़ी ही खुशी होती हैं, वो आश्चर्य हो जाते हैं मेरी आवाज सुन कर, जब मैं उनको बताता हुं– भाई! मैं अब लोगों के बीच में अपनी बात रख कर बेहद उम्दा तरीके से कविता पाठ प्रस्तुति कर पता हूं तो वो लोग मेरी बातों पर विश्वास ही नहीं कर पाते हैं। और आश्चर्यचकित स्वर में प्रश्न पूछ बैठे हैं– भाई केशव! यें सही हुआ, मगर ये तो बताओ ये हुआ कैसे? मैं भी उनके इन प्रश्नों के उत्तर में बस हल्का सा मुस्कुरा देता हूं।