श्री अरुण कुमार जैन पेशे से इंजीनियर और विचारों से लेखनी के सिपाही हैं। कहानी, उपन्यास, कविता, आलेख, व लघुकथा के साथ-साथ बाल साहित्य आदि हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं, में इन्होंने अपनी लेखनी से साहित्य की अभिवृद्धि की है। इनका बाल उपन्यास- ‘‘राजा बेटा’’ इसी श्रंखला में प्रस्तुत है।उपन्यास का नायक पितृ-विहीन ‘दिनेश’ जब एक दिन माँ को भी खो देता है तो उसके हिस्से आती है माँ की.... टूटी-फूटी झोंपड़ी, निर्धनता और जीवन की ठोकरें। इन त्रासद परिस्थितियों में वह आशा-निराशा के झंझावत में एक सामान्य किशोर की तरह फँसता है पर हर बार माँ के कहे प्रेरक वाक्य उसे उबार कर आगे बढ़ने का संबल देते हैं।माँ के द्वारा दिए गये उच्च विचार और विपत्ति में भी साहस न खोने की सीख दिनेश को कुछ करने को प्रेरित करती है। ‘‘ईश सहाय करे तबही, जब आप सहाय करे नर अपनी’’ शायद दिनेश की सभी परीक्षाएँ ईश्वर ले चुका था। आगे अभि0 अरुण कुमार जैन ने इस बाल उपन्यास को सुखान्त बनाते हुए एक सिद्धहस्त रचनाकार के रूप में बहुत ही सुन्दर तरीके से समाप्त किया है।
इसे पढ़ते-पढ़ते बच्चों को जीवन में साहस, ईमानदारी और धैर्य के साथ सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा तो मिलेगी ही बीच-बीच में आँखें भी नम हुए बिना नहीं रहेंगी। किसी भी रचना के साथ पाठक को भावनात्मक रूप से जोड़ देने की कला, लेखक की सफलता कहलाती है। इस मायने में अभि0 अरुण कुमार जैन का यह बाल उपन्यास अद्भुत, सार्थक एवं उद्देश्य परक है।
डा. दिनेश पाठक ‘शशि’
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