यह पुस्तक रिश्तों की दैहिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं की विश्लेषणात्मक व्याख्या आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करती है।
जिस प्रकार एक पौधे के जीवन के लिए माक़ूल-ज़मीन, खिली-धूप, स्वच्छ-पानी और हवा की छुअन दरकार होती है, उसी तरह किसी भी रिश्ते के लिए देह की ज़मीन, भावना का अहसास और साज-संभाल रूपी समझ की नमी चाहिए होती है।
रिश्तों की संभाल नाज़ुक पौधे की तरह करने के लिए, दैहिक-आवेग, भावनात्मक-आवेश और मनोवैज्ञानिक-पहलुओं को न सिर्फ़ जानना आवश्यक है, बल्कि उन्हें सही समय पर सही दिशा देकर व्यवहार में उतारना भी ज़रूरी होता है।
हमारा समाज क्रांतिकारी परिवर्तनों के दौर से गुज़र रहा है, जिसमें रिश्तों के दामन अहम् व महत्वाकांक्षा के सतत संघर्ष के काँटों में उलझ रहे हैं। यह किताब इस प्रक्रिया को समझते हुए रिश्तों की डगर को आसान बनाने की कोशिश में सहायक होगी। रिश्तों की सरसता और सरलता से ही जीवन का सुख सम्भव है, इसलिए यह किताब आपके पास होना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है।
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