मधुमेह के नियंत्रण में सबसे जरूरी है रोगी का शिक्षित होना और अपने इन्द्रियों पर क़ाबू होना। चिकित्सक चाहे जितनी अच्छी दवा दे दे लेकिन जब तक खुद रोगी इसके बारे में सावधान नही रहेगा, उसका मधुमेह काबू में रखना असंभव होगा। मधुमेह के जनक कहे जाने वाले प्रोफेसर जोसलिन ने कहा है “The diabetic who knows more, lives more” यानी कि जो मधुमेह का रोगी अपने रोग के बारे में जितना अधिक जनता है वह उतना ही अधिक दिन जीता है।
मधुमेह के रोगियों को अक्सर खाने से शिकायत रहती है। उनका कहना है कि रोज रोज एक ही बोरिंग खाना कोई कैसे खा सकता है। खाने में कोई स्वाद भी नही रहता है और जितना भी खा ले मन तृप्त नही होता है। इस समस्या के लिए एक अलग पृथक अध्याय दिया गया है जहाँ खाने की समस्या को बहुत ही सरल शब्दों में बताया गया है। विभिन्न तालिकाओं के माध्यम से खाद्य पदार्थों के विनिमय को बताया गया है तथा हर पदार्थ को शामिल किया गया है।
डॉ अजय कुमार, वर्तमान में राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय , वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत है। इन्होंने आयुर्वेदाचार्य की शिक्षा इसी महाविद्यालय से 2005 में पूरी की तथा इसके बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से कायचिकित्सा विषय मे एम. डी. और पी.एच. डी. की पढ़ाई पूरी की । इनका मुख्य कार्यक्षेत्र हाइपरटेंशन, कार्डियो-रेस्पिरेटरी और मधुमेह रहा है । इसके पूर्व में इनकी दो पुस्तके “हाइपरटेंशन इन आयुर्वेद” और “मेल इनफर्टिलिटी एंड मैनेजमेंट” पब्लिश हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में लगभग 20 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके है । इन्होंने लगभग 30 से अधिक सेमिनारो में व्याख्यान प्रस्तुत किया है, तथा कई सेमिनार भी आयोजित करा चुके है। हिमालय हर्बल हेल्थ केअर द्वारा “जीवक अवार्ड” तथा चरक फार्मा द्वारा “आयुरमेधा अवार्ड” से भी सम्मानित किया जा चुका है।