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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palअजीज से अतीत तक
यह पुस्तक जिसके शीर्षक से ही आपको मालूम होता कि इसमें अज़ीज़ों की अतीत बनें तक की यात्रा का ही जिक्र होगा और हाँ आप सही हैं।
'पुस्तक कवि का अर पुत्र होने की क्षमता रखती हैं।
इस पुस्तक में आपको लेखक के कुछ अजीज जो धरती माँ की गोद में ज्यादा दिन तो न रह पाये । पुस्तक में कहानी है उस लड़की की जिसनें यौवन की चादर भी न ओढ़ी थी मनचाहा प्रेम न मिला तो वह अपने परिवार के बारे में बिना
कुछ सोचे ही जीवन के रंगमंच से ही त्यागपत्र दे दी ।
कहानी है उसके उस काका की जिन पर कुसंगति अपना ढेर इस तरह डाल गई मानों उसका वह जन्मसिद्ध अधिकार रहा होगा । कहानी है उसके उस काका की जिनकी देह को बिनप्राण उन्होनें सड़क पर पाया हो और कहानी है उसके
उस्न काका की जिल्होनें उसे देश की राजधानी जैसे बढ़े शहरों में चलना सिखाया । उसके उठें से पहले सुबह की चाय का प्याला जो अकसर उसके आँखों तले रख दिया करते थे। और अक्सर उसके बदन के चिथड़ों को धोते, उन्हें खी
भी कर दिया करते थे।
कहानी उसके उस ताई की जिन्होनें उसे ढेर सारा प्यार, दुलार दिया । घरों में अनबन होने के बाद भी जिस तरह उसके लिए सब घरों के मायनें एक ही थे उसी तरह सब बच्चों के लिये ताई का स्वभाव भी एक सा ही था।
और कहानी उस परिवार की जिसमें खुशी के अंकुर कभी फूटे ही नहीं । खुशी तो खैर उस परिवार के पास दूर-दूर तक भी नजर न आती थी।
बीते वो लमहें जिनको बीतना ही था।
काल से टकराये थे।
हमें हारा और ,
काल को तो जीतना ही था।
शैलेन्द्र सिंह
मैं शैलेंद्र सिंह पुत्र श्री अमर सिंह और श्रीमती संगीता देवी । मैं देवभूमी उत्तराखण्ड की हसीन वादियों और बाबा केदार की गोद व माँ अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम स्थल रुद्रप्रयाग की भरदार पट्टी के चौरिया क्षेत्र के निकट मांथगांव नामक स्थान पर जन्म लिया हूँ। मेरी प्राथमिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल ( यू. पी. एस. मांथगाँव ) से हुई । ।और दसवीं और बारवीं गाँव के निकट राजकीय इंटर कॉलेज चौरिया भरदार से हुई । बारवीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए मैं गाँव से पाँच सौ किलोमीटर दूर, देश की राजधानी दिल्ली आ गया और दिल्ली विश्वविध्यालय से सन 2021 में स्नातक पास हुआ । दिल्ली की तंग गलियों में कुछ दिन रोजगार की तलाश में भटकता यह पंछी खुद ही भटक गया और अपनी उस लेखनी से दूर होता चला गया जिसे उसनें नौ साल की कच्ची उम्र में चलाने का जी भर प्रयास किया था । मगर जब यादों का एक जर्रा भी आपके पास हो तो आपमें पूरा पहाड़ खड़ा करने की क्षमता खुद व खुद ही पनप जाती है और वही मेरे साथ हुआ डायरी के कुछ पन्नें माफी चाहूँगा कुछ पन्नें नहीं बहुत से पन्ने जब पलटे तो मुझे (मैं ) दिखा और मैं उस मैं को कभी खोना ही नहीं चाहता । शौक की बात करू तो एक मिडिल क्लास बच्चे के क्या ही हो सकते है । वही शौक की गलियों में क्रिकेट खेलना,खेतों में कबड़ी, हौज में तैरना,गाँव के बुजुर्गों को तंग करना, बच्चों के साथ गाली-गलोच करना और उसके साथ-साथ अपने कुछ खास पलों को डायरी में कैद करना ही थे ।
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