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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palकोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता है। इसके लिये समाज भी उतना ही दोषी होता है। कोई भी व्यक्ति पहला अपराध किसी न किसी उचित या उसके द्वारा सही ठहराए जाने वाले कारणों से करता है। धीरे-धीरे उसकी अंतरात्मा मर जाती है और वह धड़ल्ले से अपराध करने लगता है। बाद में वह किसी न किसी रूप में अमानुष बन जाता है। कोई भी अन्याय किसी भी अपराध को उचित नहीं ठहरा सकता है।
मृत्यु दंड एक कानूनी हत्या है और मानवता के विरुद्ध है। किसी का भी जीने का मौलिक अधिकार छीना नहीं जा सकता। यह अपराध कम नहीं करता है। जो हम दे नहीं सकते उसे हमें लेने का कोई अधिकार नहीं है। अपराध करना एक मानसिक बीमारी होती है। बिना छुट्टी के प्रावधान के आजीवन कारावास ही अपराध को रोकने का उचित उपाय है। अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं। मृत्यु दंड देने से कभी-कभी अपराधी नायक बन जाता है, जो अपराध को बढ़ाता है। प्रताड़ित को याद करो, उसके परिवार की मदद करो। मृत्यु दंड बंद करो।
मार कर दिमागी मरीजों को, सुधार के खुमार में मत जीते रहो,
जिंदा रखो उन अमानुषों को, उन्हें घुट-घुट कर मरते देखते रहो।
सुरेन्द्र सिंह
सुरेन्द्र सिंह बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय, वाराणसी, इंडिया से 1975 में MSc., स्वर्ण पदक के साथ, उत्तीर्ण हुए। आप O.N.G.C. इंडिया से 2013 में कार्यकारी निदेशक के पद से सेवा निवृत्त हुए। आप पुर्वान्चल विश्वविद्यालय, जौनपुर, इंडिया के तकनीकी संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर के सदस्य हैं। आप भारत व विदेशों में बहुत भ्रमण करते हैं। आप, पत्नी सहित, गरीबों की सहायता तथा वृद्ध व अन्य की पारिवारिक समस्याओं को सुलझाने में बहुत कार्य करते हैं।
यह आप की पाँचवीं पुस्तक है। इनकी 3 पुस्तकें “Rasika”, “ Curse of a broken soul” और “ Readiness For Old age and Beyond “ प्रकाशित हो चुकी हैं। चौथी पुस्तक “ वृद्धावस्था व बाद की तैयारी “ प्रकाशन में है।
सुरेन्द्र सिंह मुंबई में पत्नी बीना के साथ रहते हैं, जो एक सेवा निवृत्त अध्यापिका हैं।
आप लेखक से संपर्क कर सकते हैं :
singh_surendra54@rediffmail.com
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