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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palस्वयं को बचाने के गीदड़ जैसी चपलता और भेड़िए जैसी चालाकी अति आवश्यक है। दफ्तर के कायदे कानून एक हिरण को भी भेड़िया बनने को बाध्य कर देते हैं। और भेड़िए का स्वभाव कैसा होता है या कैसा हो सकता है , ये सबको ज्ञात है।
फिर आप किसी व्यक्ति से जो कि स्वयं के अस्तित्व को बचाने के लिए तमाम बुराइयों को आत्मसात कर हीं लेता है तो उसपे प्रश्नचिन्ह क्यों? वास्तविकता तो ये है कि कुछ बुराइयां अत्यावश्यक हो जाती है आजीविका के लिए।
फिर एक रोजगार के लिए संघर्षरत व्यक्ति से धार्मिकता की उम्मीद क्यों? एक भेड़िया होकर भी कोई धर्मिक रह सकता है क्या? प्रश्न ये है कि जंगल नुमा दफ्तर में काम करते हुए अच्छाइयों को बचा के रखा जा सकता है क्या?
प्रस्तुति है जीवन के कुछ इसी तरह की सच्चाइयों , परिस्थियों और प्रश्नों से रु- ब- रू कराती हुई कुछ व्यायंगात्मक लघु कथाएं।
अजय अमिताभ सुमन
लेखक का परिचय : अजय अमिताभ सुमन , अधिवक्ता , लेखक और कवि। अंग्रेजी और हिंदी में सामान अधिकार। 15 से ज्यादा पुस्तकें अमेज़न पर उपलब्ध। दिल्ली हाई कोर्ट में पिछले दो दशकों से बौद्धिक संपदा विषयक क्षेत्र में वकालत जारी। अनगिनत कानून सम्बन्धी पत्रिकाओं जैसे कि पेटेंट एंड ट्रेड मार्क्स केसेस , लाव्यर्सक्लब इंडिया , लीगलसर्विसइंडिया , पाथ लीगल , लाइव लॉ , बार एंड बेंच , लीगल डिजायर , स्पाइसी आईपी , लेक्स एस्पायर जर्नल इत्यादि में कानून संबंधित लेख , खबर का प्रकाशन। कानून के अलावा साहित्य , दर्शन , विज्ञान , इतिहास, धर्म , विज्ञान इत्यादि में रूचि। अनेक पत्र, पत्रिकाओं, अख़बारों में कहानी , कविता , निबंध, लेख इत्यादि का प्रकाशन जैसे कि टाइम्स ऑफ़ इंडिया , नव भारत टाइम्स, दैनिक जागरण , अमर उजाला , स्पीकिंग ट्री , आज, हिंदुस्तान, आर्यावर्त, यूथ की आवाज, साहित्य कुंज , प्रतिलिपि , साहित्य पीडिया ,रचनाकार , शब्द, समजोद्धार, नूतन पथ इत्यादि।
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