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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palघुटन शब्द सुनने में बहुत छोटा व आम शब्द है। इस शब्द की गंभीरतों की वही इंसान समझ सकता है, जिसने इसे महसूस किया हो। घुटने जैसे दर्द की शुरुआत हमारे जीवन में 'कब' हो जाती है इसका हमे पता भी नही चलता और यह कब हमें अंदर से दीमक की तरह खा जाती है ना ही इसका पता चलता है।
हर मुस्कराता चेहरा खुश हो यह जरूरी नहीं कौन अपने अंदर कौनसा दुःख समेटे बेठा है, इसका हम अनुमान भी नही लगा सकते। हमारी कहानी भी कुछ ऐसी है जिसकी मुख्य पात्र ‘रोशनी’ है, रोशनी एक संयुक्त परिवार में रहते हुए भी अकेली है साथ ही ऐसी घुटन की शिकार, जो समाज के लिए आम बात है पर रोशनी के लिये तो उसके दुख का सबसे बड़ा कारण है। "घुटन " के चलते रोशनी मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, कई नई बीमारियों की शिकार हो जाती है। रोशनी तो मात्र नाम की रोशनी है, उसके जीवन में कितना अंधेरा है, यह तो उसे स्वयं नहीं पता लेकिन इस कहानी की विशेषता यही है, कि रोशनी कई दुखों से लड़कर यहां तक की अपने आप से लड़कर, अपनो से लड़कर, इन सारी बीमारियों पर हावी हो जाती है। रोशनी समाज के लिये एक बेहतर उदहारण है कि अगर समस्या है, तो समाधान भी है।
इस कहानी के जरिये मैं आप सभी को स्त्री के दुख के एक ऐसे भाग से परीचित कराना चाहती हूँ, जो कि दुख जैसा दिखता नही है पर यह दुःख भी दहेज के समान ही गंभीर है।
।।अकेलापन सबसे बड़ी घुटन ।।
अनुराधा भाटी
मैं अपने बारे मैं, क्या बताऊ, मैं अनुराधा भाटी, एक सामान्य गृहिणी हुँ और एक संयुक्त परिवार का हिस्सा हूँ। मेरा बचपन बड़ा ही सामान्य बीता। जिसमें मैंने स्कूल व कॉलेज की पढ़ाई पूरी की, B.com Final करने के बाद मेरी शादी हो गई। मुझे पढ़ाई का शोक बचपन से ही था। शादी के बाद मैंने PGDCA किया। शादी के बाद पढ़ने का अनुभव थोड़ा-सा दिलचस्प था। लिखने का शोक मुझे छोटी उम्र से ही था। मैंने कुछ-कुछ विषय पर लिखा भी है जैसे "मैं बहु हूँ बेटी नहीं", " रियालटी शो पर बदली किस्मत” आदि।
‘लोकडाउन के दौरान भी बच्चो को पढ़ाना’ इस पर भी मैंने कविता लिखी हैं। मुझे ड्राइग, आर्ट में भी रुचि है। शादी के बाद मैं जॉब करना चाहती थी लेकिन वो मैं नही कर सकी इसलिये कभी-कभी मुझे लगता है मेरी जिंदगी में कुछ कमी है। मेरे दो बेटे हैं। मैं इश्वर में आस्था रखने वाली स्त्री हूँ, आस्था हमें विश्वास प्रदान करती है और शायद इसीलिये मैं अपने आप से संतुष्ट हूँ ।
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