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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palहमारे भीतर वह अमृत है जो हमारे शरीर के गिर जाने बाद भी बच जाता है। उसकी खोज करनी चाहिए। वह अमृत जब हम इस शरीर में नहीं थे तब भी था और जब इस शरीर को छोड़ कर चले जाएंगे तब भी रहेगा। जो इस अमृत की खोज कर लेता है फिर उसका ना तो जन्म होता है और ना हीं मृत्यु होती है। इस अमृत के अनेकों नाम हैं। कोई उसे आत्मा कहता है , कोई उसे परमात्मा कहता है , कोई उसे मोक्ष कहता है , कोई उसे ब्रह्मचर्य कहता है , कोई उसे समाधि कहता है , कोई उसे निर्वाण कहता है , कोई उसे स्थितप्रज्ञ कहता है। लेकिन सभी एक हीं हैं।
सुरेंद्र कुशवाहा
आमतौर से जैसा हम जीवन को जानते हैं , इस संसार को जानते हैं वैसा ना तो यह जीवन है और ना हीं यह संसार है। क्योंकि हम चाहते कुछ और हैं , और होता कुछ और है। और यदि यह जीवन और संसार वैसा हीं होता जैसा की हम इसे जानते हैं तो वहीं होना चाहिए था जो हमने जाना और जो चाहा। वास्तव में देखा जाए तो जीवन और संसार तो वह है जो हम नहीं जानते हैं। इसलिए जीवन में वहीं होता है जो अनजाना है। हम जानते क्या हैं इस साठ सत्तर साल के जीवन में कुछ भी तो नहीं । जन्म होता है तो उस समय हमारा न नाम होता है , न जाति होती है , न धर्म होता है , न संस्कार होता है और ना कुछ होने का अहंकार होता है।
फिर कुछ दिनों बाद हमारा नाम सुरेंद्र रख दिया जाता है , जाति कुशवाहा हो जाती है , धर्म हिंदू हो जाता है , संस्कार का जामा पहना दिया जाता है और मै यह हूं रूपी अहंकार का महल निर्मित हो जाता है। वास्तव में यदि देखा जाए तो क्या हम सुरेंद्र कुशवाहा हैं …? नहीं क्योंकि जब हमारा नामकरण नही हुआ था तब भी हम थे और जब यह शरीर मिट जायेगा तब भी हम होंगे।
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